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<p>कार्यकारी सारांश &nbsp<br /> प्रतिवेदन के बारे में<br /> झारखण्ड खनिज संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन खनिज क्षेत्र से राज्य को मिलने वाले राजस्व में गिरावट की प्रवृति रही है। खनन पट्टा प्रदान करने में अनियमितताएं, पट्टाधारकों द्वारा अवैज्ञानिक और असतत खनन पद्धतियाँ आदि से संबंधित मुद्दे प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे हैं।<br /> अतः इन कमियों से निपटने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा लागू अधिनियमों एवं उसके तहत बनाये गए नियमावलियों के प्रावधानों के प्रवर्तन में राज्य सरकार की प्रभावशीलता का आकलन किया जाना आवश्यक था। पुनः, खनन गतिविधियों का राज्य के राजस्व और विकास पर पड़ने वाले महत्वपूर्ण प्रभाव का विचार करते हुए, झारखण्ड राज्य में लघु खनिजों के प्रबंधन (2017-2022) पर एक निष्पादन लेखापरीक्षा नवम्बर 2022 से अक्टूबर 2023 की अवधि में की गई।<br /> निष्पादन लेखापरीक्षा का उद्देश्य यह आकलन करना था कि क्या राज्य में सतत एवं वैज्ञानिक खनन की सुविधा प्रदान करने के लिए उपयुक्त प्रणाली अपनाई गई थी, खनिज पट्टों/अनुज्ञप्तियों का आवंटन नवीकरण या निरस्तीकरण लागू प्रावधानों के अनुरूप किया गया था राज्य में खदानों एवं लघु खनिजों का प्रबंधन पर्याप्त एवं प्रभावी था इत्यादि।<br /> निष्पादन लेखापरीक्षा के अंतर्गत चयनित छह जिला खनन कार्यालयों के विस्तृत जाँच के अतिरिक्त झारखण्ड राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड (जेएसएमडीसी) का लेखापरीक्षा किया गया था। इस निष्पादन लेखापरीक्षा का उद्देश्य राज्य में लघु खनिजों के प्रबंधन में सुधार और सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करना था।<br /> मुख्य लेखापरीक्षा निष्कर्ष<br /> लघु खनिजों के प्रबंधन से संबंधित सामने आई महत्वपूर्ण लेखापरीक्षा अवलोकन निम्नलिखित हैं:<br /> पट्टों की स्वीकृति और प्रबंधन<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspविभाग यह सुनिश्चित करने के लिए जाँच और नियंत्रण तंत्र स्थापित नहीं कर सका कि उपायुक्त अपने प्राधिकार से अधिक क्षेत्र पर खनन पट्टा स्वीकृत न करें। तीन हेक्टेयर और उससे अधिक क्षेत्र के खनन पट्टे को ई-नीलामी के लिए रखा जाना आवश्यक था। हालाँकि, एक मामले में, उपायुक्त, साहिबगंज ने अपने प्राधिकार से अधिक क्षेत्र (4.74 हेक्टेयर रैयती भूमि पर) पर खनन पट्टा स्वीकृत किया था। एक अन्य मामले में, जि.ख.प., साहिबगंज ने न केवल 3.136 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन पट्टे के लिए आवेदन स्वीकार किया, बल्कि पट्टा क्षेत्र को कम करने हेतु आवेदक द्वारा कोई अनुरोध किए बिना, मनमाने ढंग से क्षेत्र को 2.833 हेक्टेयर तक कम करके आशय का पत्र जारी कर दिया।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspजिला खनन कार्यालयों, चतरा और पलामू में, अंचल अधिकारी के प्रतिवेदन के आधार पर पत्थर के आठ पट्टे प्रदान गए थे जिसमें भूमि की प्रकृति गैर मजरुआ परती कदीम, पत्थर पहाड़, टांड़-II, पुरानी परती और धनहर-II के रूप में वर्णित थी। लेखापरीक्षा ने पाया कि ये पट्टे उस भूमि पर दिए गए थे जो राजस्व अभिलेखों के अनुसार जंगल झाड़ थी और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत वन भूमि की श्रेणी में आती थी।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspविभाग के पास नए खनन पट्टों के आवंटन के दौरान बकायादारों की पहचान करने और भूमि उपयोग की प्रकृति का पता लगाने की कोई प्रणाली नहीं थी परिणामस्वरूप वन भूमि पर खनन पट्टों का आवंटन हुआ। इनके परिणामस्वरूप, अंततः राज्य में खनन पट्टों का अनियमित रूप से आवंटन, नवीकरण या विस्तार हुआ।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपुनः, नमूना जाँचि&zwjत दो जिलों में पट्टेधारियों ने 2017-23 के दौरान, निरंतर एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए 276.99 एकड़ के खनिज क्षेत्र में खनन कार्य नहीं किया था, इन पट्टों को न तो समाप्त घोषित किया गया या न ही निरस्त किया गया। परिणामस्वरूप, ये अपरिचालित पट्टे निष्क्रिय रहे, जिससे राज्य के राजस्व में रुकावट आई और खनिज विकास प्रभावित हुआ।<br /> (कंडिका 2.1.1, 2.1.2, 2.2.1, 2.2.3 तथा 2.3)<br /> नीलामी प्रक्रिया में विलंब<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspखनिज ब्लॉकों की नीलामी की प्रगति बहुत धीमी रही और 2018-23 के दौरान केवल 3.77 प्रतिशत (292 ब्लॉकों में से 11) की नीलामी पूरी हुई। यह विभाग की अनुश्रवण और योजना में कमियों के कारण था, जो चरणबद्ध और काल-बद्ध तरीके से नीलामी के प्रभावी संचालन को बाधित किया। परिणामस्वरूप, पर्याप्त संसाधनों के बावजूद लघु खनिज ब्लॉक निष्क्रिय पड़े रहे, जिससे राजस्व का अवरोधन हुआ।<br /> (कंडिका 2.4.1)<br /> राजस्व की प्रवृत्ति&nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspलघु खनिजों से राजस्व प्राप्तियाँ काफी कम हो गई, जो 2017-18 में ₹ 1,082.44 करोड़ से घटकर 2021-22 में ₹ 697.73 करोड़ हो गई। साथ ही, राज्य के कुल राजस्व में लघु खनिज प्राप्तियों की हिस्सेदारी में भी उल्लेखनीय गिरावट आई, 2017-18 में 5.36 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 2.23 प्रतिशत हो गई।<br /> &nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp(कंडिका 3.1)<br /> स्वचालन में कमियाँ<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspजटिल खनन प्रक्रियाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) आधारित एक खनिज प्रशासन प्रणाली, झारखण्ड इंटीग्रेटेड माइन्स एवं मिनरल्स मैनेजमेंट सिस्टम (जिम्स) की शुरुआत (मई 2015) की गई। सात वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, लेखापरीक्षा के दौरान महत्वपूर्ण अभिलेखों की अनुपलब्धता के कारण अभिलेखों का स्वचालन अपूर्ण पाया गया परिणामस्वरूप, सभी महत्वपूर्ण डेटा/सूचना को एक मंच पर समाहित करने का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका। उदाहरण के लिए, जिम्स में भू-निर्देशांकों का उपयोग करके गूगल एप्लिकेशन पर खनन पट्टा का नक्शा बनाने का प्रावधान है, जो विभाग को उत्पन्न नक्शों के माध्यम से खनन कार्यों की अनुश्रवण में सहायता कर सकती है। हालाँकि, 47 मामलों में आवश्यक&nbsp<br /> भू-निर्देशांक नहीं भरे गए थे, जबकि 15 मामलों में भरे गए भू निर्देशांक अपर्याप्त थे, जिससे उपग्रह चित्र बनाने और खनन गतिविधियों के अनुश्रवण में बाधा उत्पन्न हुई।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपत्थर-बोल्डरों पर देय स्वामिस्व का निर्धारण उनके संभावित उपयोग के आधार पर किया जाना था। हालांकि, प्रणाली के माड्यूल्स में इन विशिष्ट उपयोगों की पहचान की क्षमता नहीं थी। नियमावली के अनुसार पट्टेधारियों द्वारा देय स्वामिस्व का वार्षिक मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है, परंतु जिम्स में इस उदेश्य के लिए आवश्यक सुविधा (टूल्स) का अभाव था। इन खामियों के कारण, विभाग द्वारा राजस्व के निर्धारण और संग्रहण के लिए व्यापक रूप से जिम्स का उपयोग नहीं किया जा सका।&nbsp<br /> (कंडिका 3.2.1)<br /> राजस्व का रिसाव &nbsp&nbsp&nbsp &nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspअक्टूबर 2019 से जनवरी 2022 की अवधि के दौरान 30 मामलों में जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) की राशि सहित कुल ₹ 7.53 करोड़ स्वामिस्व का कम आरोपण और मार्च 2016 से मार्च 2022 के बीच 15 मामलों में ₹ 2.23 करोड़ नियत लगान की वसूली नहीं होने के कारण राजस्व का रिसाव हुआ था। पुनः, अप्रैल 2014 से जुलाई 2023 के बीच चार जिलों के 26 पट्टाधारियों ने अनुमेय सीमा से 33.21 लाख घन मीटर अधिक लघु खनिजों का खनन किया। हालाँकि, इन पट्टेधारियों को खनिजों के अनधिकृत खनन के लिए ₹ 205.21 करोड़ अर्थदंड का भुगतान करना था, परन्तु संबंधित जिलों के जिला खनन कार्यालयों ने अर्थदंड आरोपित नहीं किया और न ही संग्रह किया।<br /> (कंडिका 3.2.2, 3.2.3 और 3.3)&nbsp<br /> बालू घाटों का प्रबंधन<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspराज्य सरकार ने राज्य में पर्यावरणीय दृष्टि से सतत और सामाजिक रूप से उत्तरदायी तरीके से बालू खनन के प्रभावी मार्गदर्शन और प्रबंधन हेतु झारखण्ड राज्य बालू खनन नीति, 2017 अधिसूचित (अगस्त 2017) किया। नीति के अनुसार, राज्य में श्रेणी-2 के बालू घाटों का प्रबंधन 16 अगस्त 2017 से पाँच वर्षों की अवधि के लिए जेएसएमडीसी को सौंपा गया था, जिसे बाद में अगस्त 2022 से तीन वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspखान निदेशालय ने (नवंबर 2017) जेएसएमडीसी को 19 जिलों में श्रेणी-2 के कुल 177 बालू घाटों की एक सूची उपलब्ध कराई, जिसे बाद में (मार्च 2022) 23 जिलों में 608 घाटों तक अद्यतन किया गया। जेएसएमडीसी ने 389 बालू घाटों को परिचालित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ किया, लेकिन केवल 21 घाटों का ही परिचालन कर सका। इसका प्रमुख कारण खनन योजनाओं को समय पर बनाना सुनिश्चित न करना और पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान करने के लिए राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (सीआ) को प्रस्ताव प्रस्तुत करने में विलंब था। 368 घाटों, जो 9,782.55 एकड़ क्षेत्र में फैले थे, के अपरिचालित रहने के कारण, राज्य सरकार को ₹ 70.92 करोड़ का संभावित नुकसान हुआ।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspचूँकि राज्य में श्रेणी-2 के सभी बालू घाट अक्टूबर 2018 से सिर्फ जेएसएमडीसी द्वारा परिचालित किए जा रहे थे, इसलिए विभाग द्वारा प्रतिवेदित बालू से प्राप्त स्वामिस्व जेएसएमडीसी द्वारा प्रतिवेदित आंकड़ों से मेल खानी चाहिए थी। तथापि, 2019-2022 की अवधि के लिए स्वामिस्व राशि में महत्वपूर्ण विसंगतियाँ देखी गईं जो ₹ 82.55 लाख से ₹ 7.61 करोड़ के बीच था, जिसके लिए लेखापरीक्षा को कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।<br /> (कंडिका 3.4.1, 3.4.3 और 3.4.4.1)<br /> खनन योजना/प्रगामी खान समापन योजना का अनुमोदन एवं कार्यान्वयन<br /> &bull &nbsp&nbsp &nbspखनन योजना, वैज्ञानिक एवं सतत खनन पद्धतियों के आधार के रूप में कार्य करती है। फरवरी 2009 से मार्च 2022 के दौरान स्वीकृत किए गए नए पट्टों के नमूना जाँचित 74 मामलों में से 64 में, स्थल निरीक्षण या आवेदकों द्वारा खनन योजना जमा करने की तिथियों को समर्थित दस्तावेज़ के बिना ही केवल स्वीकृत खनन योजना और सशर्त अनुमोदन पत्र लेखापरीक्षा को प्रस्तुत किए गए थे। दस्तावेजीकरण की यह अनुपलब्धता से समीक्षा एवं अनुमोदन प्रक्रिया की पूर्णता और पारदर्शिता पर प्रश्न उत्पन्न करता है।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspनमूना जाँचित 74 पत्थर पट्टों के कुल 138 खनन योजना में से 120 योजनाएँ लेखापरीक्षा के समक्ष प्रस्तुत की गई। लेखापरीक्षा ने पाया कि जाँच की गई खनन योजना में से 54 प्रतिशत (120 में से 65) गैर-नामित प्राधिकारियों द्वारा अनुमोदित किए गए थे। झा.ल.ख.स. नियमावली के अनुसार, खनन योजना का अनुमोदन पूरी जाँच के बाद ही किया जाना चाहिए, लेकिन नौ मामलों में इसे या तो उसी दिन या प्रस्तुत करने के अगले दिन ही अनुमोदित कर दिया गया था, जो गहन जाँच के अभाव को दर्शाता है। पुनः, अनुमोदित खनन योजना में अविश्वसनीय जानकारी शामिल थी जैसे, गलत सतही योजनाएँ, सीमा स्तंभों के गलत भू-निर्देशांक, अतिच्छादित पट्टा क्षेत्र, खनन योग्य और गैर-खनन योग्य भंडारों का गलत अनुमान, भूजल तलों का गलत आकलन।&nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपट्टा क्षेत्र को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है: खनन पिट क्षेत्र, जिसमें उत्खनन के लिए खनन योग्य भंडार और बेंचों के रूप में तथा पिट क्षेत्र के चारों ओर 7.5 मीटर चौड़ी सुरक्षा अवरोधों में अवरुद्ध गैर-खनन योग्य संसाधन, जो खनन के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं। लेखापरीक्षा ने गणना किया कि 25 मामलों में से 14 मामलों में कुल 83.87 लाख टन गैर-खनन योग्य संसाधनों को सुरक्षा अवरोधों के भीतर अवरुद्ध किया जाना चाहिए था, जबकि खनन योजना में केवल 53.21 लाख टन ही निर्धारित किए गए थे, जिससे खनन योग्य संसाधनों की मात्रा 30.66 लाख टन तक अधिक आकलित की गई। परिणामस्वरूप, खनन पिट क्षेत्र के भीतर ₹ 34.96 करोड़ के खनन योग्य भंडार का अनियमित लेखांकन हुआ।&nbsp<br /> (कंडिका 4.1.1, 4.1.2 और 4.1.3)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपट्टे के गैर-खनन योग्य क्षेत्र में खनन करना एक अनियमित प्रचलन है। लेखापरीक्षा ने पाया कि 63 पट्टों में से 55 (87 प्रतिशत) की पार्श्व दीवारें अनुशंसित सौम्य ढलान के बजाय तीक्ष्ण ढलान वाली थीं। परिणामस्वरूप बेंच और सुरक्षा अवरोध बनाए बिना, गैर-खनन योग्य संसाधनों का अनियमित उत्खनन हुआ। पट्टेधारियों ने अनुमेय गहराई से भी अधिक उत्खनन किया, गड्ढों की गहराई अनुमेय सीमा से 2.5 से 50 मीटर अधिक (अर्थात् 11 से 494 प्रतिशत) के साथ, गैर-खनन योग्य संसाधनों का ऊर्ध्वाधर उत्खनन किया।&nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspइसके अतिरिक्त, 22 में से 14 मामलों में पट्टाधारियों ने पट्टा क्षेत्र से बाहर, 15.14 हेक्टेयर क्षेत्र से खनिज उत्खनन किया था। पट्टा क्षेत्र से बाहर उत्खनन की निगरानी जिम्स पोर्टल पर प्रत्येक सीमा स्तंभ के भू-निर्देशांकों को अद्यतन करके केएमएल फाइलों के माध्यम से प्राप्त पट्टा क्षेत्र के उपग्रह चित्रों से की जा सकती थी। नमूना जाँचित 63 पत्थर पट्टों में यह सुनिश्चित नहीं किया गया था।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspलेखापरीक्षा ने खनिज उत्खनन की मात्रा का अनुमान गूगल-अर्थ में खुदाई वाले क्षेत्रों को मापकर तथा संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान देखी गई गहराई के साथ गुणा करके, ढलानों और ढुलाई सड़कों में फंसे हुए मात्राओं को समायोजित करके लगाया। यह पाया गया कि पट्टाधारियों ने जाँच किये गए 63 पट्टों में से 13 पट्टों में पत्थर उत्खनन की वास्तविक मात्रा को 93.53 लाख घ.मी. तक कम प्रतिवेदित किया था। इसकी पुष्टि बिरसा प्रौद्योगिकी संस्थान (बीआईटी) सिंदरी द्वारा की गई, जिसे इन 13 खदानों के लिए पत्थर खदानों में उत्खनित खनिजों की मात्रा की गणना के लिए लेखापरीक्षा द्वारा नियुक्त किया गया था। बीआईटी, सिंदरी ने कुल उत्खनन की गणना के लिए ऑटोकैड सिविल 3डी सॉफ्टवेयर का उपयोग किया और 95.51 लाख घ.मी. अधिक उत्खनन (अवधि के दौरान उत्पादन मात्रा घटाने के बाद) प्रतिवेदित किया, जो लेखापरीक्षा द्वारा अनुमानित मात्रा से 2.12 प्रतिशत अधिक है। खनिज उत्खनन (93.53 लाख घ.मी.) की कम रिपोर्टिंग के कारण अनुमानित वित्तीय प्रभाव ₹ 292.75 करोड़ का आकलन किया गया था।<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspझारखण्ड सरकार के खान एवं भूतत्&zwjव विभाग ने वार्षिक 20 प्रतिशत अनुभागीय माप की आवश्यकता के लागू प्रावधानों के विपरीत, वर्ष 2017-22 के दौरान जाँच किए गए छह जिलों में मौजूद लघु खनिज पट्टों का मात्र 0.68 से 3.17 प्रतिशत ही वार्षिक अनुभागीय माप किया था।&nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbsp63 में से 46 मामलों में, या तो सीमा स्तंभ पूरी तरह से (30 मामले) अनुपस्थित थे या केवल आंशिक रूप से (16 मामले) मौजूद थे। पुनः, चयनित जिलों में 63 में से 62 पट्टों में, अनिवार्य 7.5 मीटर सुरक्षा अवरोध को कम कर दिया गया था, जिसकी वास्तविक चौड़ाई 0 से 7 मीटर तक थी।<br /> (कंडिका 4.1.4.1)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपर्यावरण पर खनन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए, खनन पट्टों के सुरक्षा अवरोधों पर वृक्षारोपण किया जाना था। तदनुसार, पट्टेधारियों को ग्रिड पैटर्न में सुरक्षा अवरोधों पर अनुशंसित मात्रा में वृक्षारोपण करना आवश्यक था। लेखापरीक्षा में पाया गया कि चयनित जिलों में जाँच किए गए 63 पट्टों में से 61 में, प्रस्तावित 74,676 वृक्षों के विरुद्ध केवल 2,225 वृक्षारोपण किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 20 से 100 प्रतिशत तक कम वृक्षारोपण हुआ। इसके अलावा, प्रदूषण के स्तर की निगरानी के लिए पट्टा क्षेत्र में वायु, जल और ध्वनि निगरानी केंद्र स्थापित नहीं पाई गई।&nbsp<br /> (कंडिका 4.1.4.2)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspप्रत्येक खदान के लिए एक खान समापन योजना की आवश्यक है, जो दो प्रकार की होती है: प्रगामी खान समापन योजना, जिसका उद्देश्य खान या उसके किसी भाग में सुरक्षात्मक, पुनर्ग्रहण और पुनर्वास उपाय प्रदान करना है और अंतिम खान समापन योजना, जिसका उद्देश्य खनन और खनिज प्रसंस्करण कार्यों की समाप्ति के बाद खान या उसके किसी भाग को बंद, पुनर्ग्रहण और पुनर्वास करना है। लेखापरीक्षा में पाया गया कि जाँच किये गए 63 में से 61 पत्थर पट्टों में (दो मामलों में खनन योजना प्रस्तुत नहीं किए गए), हालाँकि प्रगामी खान समापन योजनाएँ खनन योजना के साथ प्रस्तुत की गई थीं, लेकिन उनका अनुपालन नहीं किया गया था। पुनः, 63 नमूना जाँचित मामलों में से 12 में अंतिम खान समापन योजनाएँ प्रस्तुत नहीं की गई थी, जहाँ पट्टे की अवधि मई 2019 से जुलाई 2023 तक की अवधि के दौरान समाप्त हो गई थी।<br /> (कंडिका 4.1.5)<br /> पर्यावरणीय स्वीकृति &nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspपरिवेश पोर्टल पर आवेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के तिर्यक जाँच हेतु प्रणाली के अभाव के कारण, आवेदक जाली सन्नहित क्षेत्र प्रमाण-पत्र के आधार पर श्रेणी बी-2 (5 से 25 हेक्टेयर) के बदले श्रेणी बी-2 (0&ndash5 हेक्टेयर) में सीआ से पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने में सक्षम हो गए। इन गलत प्रमाण-पत्रों के आधार पर पट्टे प्राप्त करने के उपरांत, पट्टाधारि&zwjयों ने वर्ष 2022-23 से 2023 24 के दौरान 6.35 लाख घ.मी. पत्थर मूल्य ₹ 19.88 करोड़ (मार्च 2024 तक) का अनधिकृत उत्खनन किया था।<br /> (कंडिका 4.2.1)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspनवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के दौरान लेखापरीक्षा द्वारा किए गए लाभार्थियों के सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 29 प्रतिशत (171) प्रतिभागियों ने बताया कि खनन गतिविधियों ने उन्हें रोजगार प्रदान किया, 68 प्रतिशत (407) ने पर्यावरणीय क्षति, कृषि क्षेत्र के विनाश, जलस्तर में कमी, क्षतिग्रस्त सड़कों और पुनर्स्थापन कार्यों के अभाव के कारण उनके जीवन की गुणवत्ता खराब होने पर चिंता व्यक्त किया।<br /> &nbsp(कंडिका 4.2.3)<br /> खनिजों का परिवहन<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbsp28 मार्च 2023 तक खान एवं भूतत्&zwjव विभाग ने कुल 72,449 वाहनों का पंजीकरण किया, परंतु पाँच वर्षों के उपरांत भी कोई भी वाहन, रेडियो फ्रीक्वेंशी आइडेंटिफिकेशन/ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (आरएफआईडी/जीपीएस) अथवा अन्य कोई वाहन ट्रैकिंग प्रणाली से युक्त नहीं थे। वाहनों की अनधिकृत गतिविधियाँ, अधिक भार का वहन, अपंजीकृत वाहनों द्वारा परिवहन का पता करने के लिए व्यापक प्रणाली के अभाव में विभाग केवल परमिट एवं चालान प्रणाली के भरोसे रहा।<br /> (कंडिका 4.3.1)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspखनिजों के परिवहन की संपूर्ण प्रणाली यह सुनिश्चितता नहीं प्रदान कर सकी जिससे खनिज का अवैध परिवहन रोका जा सके। लेखापरीक्षा ने स्टोन चिप्स के सात व्यवसायियों के वे-ब्रिज प्रतिवेदनों की नमूना जाँच किया और पाया कि 85 प्रतिशत मामलों में जिम्स के माध्यम से निर्गत चालान उपलब्ध नहीं थे।&nbsp<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspजिम्स प्रणाली में त्रुटि के कारण, 28 वाहनों के मामलों में, 35 प्रारंभिक चालानों के वैधता अवधि समाप्त होने से पहले ही 50 अतिरिक्त चालान जारी कर दिए गए, जो चालानों के दुरुपयोग की जोखिम को बढ़ाता है।<br /> (कंडिका 4.3.1.1)<br /> &bull&nbsp&nbsp &nbspलेखापरीक्षा में (i) पट्टे के अंतर्गत क्षेत्र के अलावा किसी अन्य क्षेत्र से अवैध रूप से निकाले गए पत्थर के परिवहन के लिए परिवहन चालान के दुरुपयोग और (ii) समाप्त हो चुके पट्टे के खदान क्षेत्र पर पड़े पत्थर के अंतिम भंडार के परिवहन के मामले देखे गए।<br /> (कंडिका 4.3.1.2)<br /> &nbsp</p>