यह कार्यालय नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक(कर्त्तव्य, शक्तियां एवं सेवा शर्तें) अधिनियम 1971 में उल्लिखित अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करते हुए, शासकीय व्यय एवं प्राप्तियों के विभिन्न पहलुओं की जॉंच करता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल है :-

  • निधियों के प्रावधानों के विरुद्ध यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या लेखों में व्यय के रूप में दर्शाई गई पूंजी, उस उद्देश्य के लिए प्राधिकृत थी, जिस पर वह व्यय की गई।
  • नियमों एवं विनियमों के विरुद्ध लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि क्या किया गया व्यय सार्वजनिक पूंजी को खर्च करने की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए बनाए गए कानूनों नियमों एवं विनियमों के अनुरूप है।
  • संस्वीकृतियों एवं व्यय की लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि प्रत्येक मद पर व्यय सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन से किया गया तथा सार्वजनिक पूंजी को खर्च करने के लिए प्राधिकृत था।
  • औचित्य लेखापरीक्षा के अंतर्गत व्यय की छानबीन की महज औपचारिकता से आगे बढ़कर उसकी बुद्धिशीलता एवं मितव्ययिता की जॉच की जाती है तथा सार्वजनिक पूंजी की बर्बादी एवं अनुचित व्यय के मामलों को उजागर करता है।
  • निष्पादन लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि योजनाओं कार्यक्रमों ने न्यूनतम लागत पर इच्छित उद्देश्य हासिल किए है तथा अभिप्रेत/उद्दिष्ट लाभ दिया है।
  • स्वंतत्रता के पश्चात् व्यय, राजस्व एवं पूंजी में तथा व्ययों के मिलान के लिए प्राप्तियों एवं उधारियों, में वृद्वि के साथ आर्थिक विकास एवं सामाजिक गतिविधियों में काफी उछाल होता रहा है। शासन के स्वरूप में परिवर्तन तथा इसकी गतिविधियों की जटिल प्रकृति ने लेखापरीक्षा की प्रकृति एवं क्षेत्र में परिवर्तन की मांग की। लेखापरीक्षा महज लेखांकन एवं नियमित जांच से विकसित होकर प्रणालियों तथा शासन के संचालनों के अंतिम परिणामों उनकी मितव्ययिता, दक्षता तथा प्रभावशीलता की जॉच करते हुए उनके मूल्यांकन तक आ गया है।
  • यह सुनिश्चित करना कि शासन को देय प्राप्तियाँ उचित रूप से आकलित, एकत्रित तथा शासकीय खातों में जमा की गईं हैं।
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