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झारखंड

प्रतिवेदन संख्या 3 वर्ष 2021 - 31 मार्च 2019 को समाप्त हुए वर्ष के लिए झारखण्ड में जिला अस्पतालों के परिणामों पर प्रतिवेदन

दिनांक जिस पर रिपोर्ट की गई है:
Tue 15 Mar, 2022
शासन को रिपोर्ट भेजने की तिथि:
सरकार के प्रकार:
राज्य
क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

अवलोकन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 151 तथा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्तव्य, शक्तियाँ, और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 के खण्ड 19(अ) के तहत 31 मार्च 2019 को समाप्‍त हुए वर्ष के लिए तैयार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का झारखण्‍ड  में जिला अस्पतालों के परिणामों, झारखण्ड सरकार पर लेखापरीक्षा प्रतिवेदन दिनांक 27 दिसंबर 2021 को झारखण्ड के राज्यपाल को दिया गया था। इस प्रतिवेदन को राज्य के विधानसभा के पटल पर दिनांक 15 मार्च 2022 को रखा गया।

2014-19 की अवधि को आच्छादित करते हुए राज्य में जिला अस्पतालों द्वारा प्रदान की जा रही चिकित्सा सेवाओं और रोगी देखभाल की गुणवत्ता का आकलन करने के उद्देश्य से 2019-20 के दौरान झारखण्ड में जिला अस्पतालों के परिणामों की निष्पादन लेखापरीक्षा की गई।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में निर्धारित लक्ष्यों और वैश्विक स्तर पर सतत विकास लक्ष्य 3 के अपेक्षित परिणामों को ध्यान में रखते हुए, परिणामों का मूल्यांकन समयपरक और व्यवस्थित सुधारों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इस प्रतिवेदन का उद्देश्य उन क्षेत्रों की पहचान करना है जिनमें शुद्धि और सुधार की आवश्यकता है।

यह परिणाम आधारित लेखापरीक्षा राज्य के जिला अस्पतालों में प्राप्त रोगी देखभाल पर केंद्रित है। नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में पूर्व-निर्धारित मानदंडों पर बाह्य रोगी और अंतः रोगी सेवाएँ, मातृत्व सेवाएँ, निदानकारी सेवाएँ, संक्रमण नियंत्रण और औषधि प्रबंधन जैसी विभिन्न सेवाओं का मूल्यांकन किया गया है। अंतः रोगी सेवाओं के आकलन के  लिए पूर्व-निर्धारित परिणाम संकेतकों का भी उपयोग किया गया था।

स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नीतिगत ढाँचा

लेखापरीक्षा ने देखा कि विभाग ने बाह्य रोगी और अंतः रोगी सेवाओं, पैथोलॉजी जाँच और मानव संसाधनों के संबंध में जिला अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में सभी प्रकार के संसाधनों और सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वयं के मानकों/मानदंडों को तैयार नहीं किया था। परिणामस्वरूप, एक व्यवस्थित अंतराल विश्लेषण नहीं किया गया था। मानकों/मानदंडों की अनुपस्थिति से अस्पतालों में संसाधनों और सेवाओं की उपलब्धता प्रभावित हुई और होगी।

बाह्य रोगी सेवाएँ

नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में वर्ष 2014-15 की तुलना में वर्ष 2018-19 में बाह्य रोगी विभागों (ओपीडी) में रोगी भार में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। ओपीडी में रोगियों की संख्या में वृद्धि के बावजूद, प्रत्येक ओपीडी क्लिनिक एक ही चिकित्सक द्वारा चलाया जा रहा था, जिससे प्रति चिकित्सक प्रति दिन रोगी भार में वृद्धि हो रही थी। नमूना जाँचित छः जिला अस्पतालों में, विशेष रूप से सामान्य चिकित्सा ओपीडी (79 और 325 रोगियों के बीच), स्त्री रोग ओपीडी में (30 और 194 रोगियों के बीच) और शिशु रोग ओपीडी में (20 और 118 रोगियों के बीच) प्रति चिकित्सक प्रति दिन अत्यधिक रोगी भार का परामर्श समय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जो सुझाए गए पाँच मिनट के न्यूनतम परामर्श समय से कम था। उच्च रोगी भार और फलस्वरूप कम परामर्श समय के बावजूद, नमूना जाँचित जिला अस्पतालों ने बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए इन ओपीडी में एक से अधिक चिकित्सकों को तैनात नहीं किया। न्यून परामर्श समय सीधे परामर्श प्रक्रिया के साथ रोगी के असंतोष से जुड़ा होता है। रोगियों के लिए प्रतीक्षा समय भी प्रभावित हुआ क्योंकि पंजीकरण खिड़कियों की संख्या दैनिक रोगी भार में वृद्धि के अनुरूप नहीं थी, कुछ नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में बैठने की उपयुक्त सुविधा और शौचालयों की कमी तथा व्यापक तौर पर एक कमजोर शिकायत निवारण प्रणाली थी।

निदानकारी सेवाएँ

नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में क्रियाशील उपकरण, उपभोग्य सामग्रियों और मानव संसाधनों की उपलब्धता के मामले में रेडियोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल दोनों निदानकारी सेवाएँ न्यून थीं। नमूना जाँचित अधिकांश जिला अस्पतालों में एक्स-रे मशीनों की अपेक्षित रेंज नहीं थी। दो जिला अस्पतालों में अल्ट्रासोनोग्राफी (यूएसजी) सुविधा उपलब्ध नहीं थी और किसी भी नमूना जाँचित जिला अस्पताल में कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन उपलब्ध नहीं था।

नमूना जाँचित सभी जिला अस्पतालों में आवश्यक रोग संबंधी जाँच की उपलब्धता में गंभीर कमियाँ थीं; जबकि प्रयोगशाला तकनीशियनों और आवश्यक उपकरणों की कमी के कारण इन-हाउस पैथोलॉजी सेवाओं के कार्य बाधित थे।

नमूनों की प्राप्ति और रोगियों को जाँच परिणामों की रिपोर्टिंग के बीच समय के अंतराल की निगरानी के अभाव के कारण पैथोलॉजी सेवाओं में न्यूनतम दक्षता मानक एक चुनौती बना रहा।

अंतः रोगी सेवाएँ

नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में बर्न वार्ड, कान नाक और गला (ईएनटी), दुर्घटना और ट्रॉमा वार्ड के साथ-साथ मनश्चिकित्सा के लिए आंतरिक सेवाओं की उपलब्धता में महत्वपूर्ण कमियाँ थीं।

विभिन्न जिला अस्पतालों में अंतः रोगी सेवाओं में  भी संसाधनों की उपलब्धता के मामले में भिन्नता थी।

  • नमूना जाँचित छः जिला अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी 19 से 56 प्रतिशत के बीच थी। नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में 9 से 18 प्रतिशत विशेषज्ञों की भी कमी थी। आगे, नमूना जाँचित किसी भी जिला अस्पताल में आयुष, त्वचा विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान और फोरेंसिक के विशेषज्ञ नहीं थे।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में, पराचिकित्साकर्मी की कमी 43 से 77 प्रतिशत के बीच थी, जबकि स्टाफ नर्सों की कमी 11 से 87 प्रतिशत के बीच थी।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में से किसी में भी ईएनटी और हड्डी रोग के लिए शल्यचिकित्सा कक्ष (ओटी) उपलब्ध नहीं थे, जबकि पाँच जिला अस्पतालों में आपातकालीन सेवाओं के लिए ओटी उपलब्ध नहीं थे। नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के सभी ओटी में उपकरण एवं औषधियों की कमी थी।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में से ओटी प्रक्रियाओं के अभिलेख केवल  जिला अस्पताल, पूर्वी सिंहभूम में संधारित किए गए थे। जबकि तीन जिला अस्पतालों (देवघर, पलामू और रामगढ़) ने कोई अभिलेख संधारित नहीं किया था, इसे जिला अस्पताल, हजारीबाग और राँची में आंशिक रूप से संधारित किया गया था। शल्य चिकित्सा सुरक्षा जाँच-सूची, शल्य चिकित्सा पूर्व मूल्यांकन अभिलेखों और शल्य चिकित्सा पश्चात मूल्यांकन अभिलेखों के अभाव या आंशिक संधारण के चलते नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के ओटी में सुरक्षा प्रक्रियाओं का पालन किया गया था या नहीं, यह पता नहीं किया जा सकता था।
  • राज्य में 23 जिला अस्पतालों में से जुलाई 2016 और मई 2017 के बीच केवल नौ[1] जिला अस्पतालों में गहन देखभाल इकाइयों (आईसीयू) की स्थापना की गई थी। आगे छ: नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में आईसीयू में उपकरणों और औषधियों की कमी देखी गई। इस प्रकार, रोगियों को सघन देखभाल पर्याप्त नहीं था और उन्हें उच्च सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए रेफर किए जाने की संभावना थी।
  • नमूना जाँचित पाँच जिला अस्पतालों में जिला अस्पताल, हजारीबाग को छोड़कर रोगियों को बेहतर देखभाल प्रदान करने के लिए पृथक दुर्घटना एवं ट्रॉमा वार्ड उपलब्ध नहीं थे और रोगियों को निकटतम उच्च सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के लिए रेफर किया गया था।
  • यद्यपि आईपीएचएस में निर्धारित है, नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में से किसी में भी अंतः रोगियों को प्रदान किए गए आहार के गुणवत्ता परीक्षण के लिए कोई प्रणाली नहीं थी।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में से केवल एक (पूर्वी सिंहभूम) में आपदा प्रबंधन योजना (डीएमपी) तैयार की गई थी। अतः किसी भी प्रकार की आपदा की स्थिति में पाँच[2] जिला अस्पतालों के पास उचित योजना का अभाव था।
  • दो जिला अस्पतालों (पलामू और रामगढ़), जिन्होंने कुछ महीनों में इसे हासिल किया था,  को छोड़कर नमूना जाँचित जिला अस्पतालों द्वारा 80 प्रतिशत से अधिक की वांछित बेड ऑक्यूपेंसी रेट (बीओआर) हासिल नहीं की गई थी। तथापि, जिला अस्पताल, पलामू को छोड़कर जहाँ बीओआर मई 2018 में मई 2014 के 54 प्रतिशत से घटकर 50 प्रतिशत हो गया, सभी नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में मई 2014 से मई 2018 में सुधार दिखाई दे रहा था।
  • दो जिला अस्पतालों (देवघर और पूर्वी सिंहभूम) की बेड टर्न-ओवर दरें (बीटीआर) अन्य नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के बीटीआर की तुलना में बहुत कम थी, जो इन अस्पतालों में तुलनात्मक अक्षमता को दर्शाती है।
  • तीन जिला अस्पतालों (देवघर, हजारीबाग और पलामू) में लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस (एलएएमए) दर अधिक थी, जो दर्शाता है कि इन अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता खराब थी।

मातृत्व सेवाएँ

सुविधा आधारित मातृत्व सेवाओं के सभी चार प्रमुख घटकों - प्रसवपूर्व देखभाल, व्यापक गर्भपात देखभाल (सीएसी) सेवाएँ, अंतर्गर्भाशयी देखभाल या प्रसव देखभाल और प्रसवोत्तर देखभाल में महत्वपूर्ण कमियाँ पाई गईं:

  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में, 2014-19 के दौरान पंजीकृत 1.30 लाख गर्भवती महिलाओं (पीडब्ल्यू) में से 51,526 (40 प्रतिशत) गर्भवती महिलाओं को एएनसी का पूरा चक्र प्रदान नहीं किया गया था। पंजीकृत गर्भवती महिलाओं में से 77,762 (60 प्रतिशत) गर्भवती महिलाओं को पहला टिटनेस टॉक्सॉयड (टीटी) इंजेक्शन नहीं दिया गया, 85,743 (66 फीसदी) गर्भवती महिलाओं को दूसरा टीटी इंजेक्शन नहीं दिया गया और 54,539 (42 फीसदी) गर्भवती महिलाओं को आयरन और फोलिकएसिड (आईएफए) टैबलेट नहीं दिया गया। यह चिंता का विषय है क्योंकि पर्याप्त एएनसी सेवाओं की कमी का सीधा संबंध मृत जन्मों और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि से है।
  • प्रसूति आईपीडी में आवश्यक औषधियाँ उपलब्ध नहीं थीं, जिसमें हाइड्रैलाजीन छ: नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में; डोपामाइन/मिथाइलडोपा रामगढ़ को छोड़कर पाँच नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में; एड्रेनालाईन, कैल्शियम ग्लूकोनेट और डायजेपाम पूर्वी सिंहभूम और रामगढ़ को छोड़कर चार जिला अस्पतालों में; एम्पीसिलीन पूर्वी सिंहभूम और राँची को छोड़कर चार जिला अस्पतालों में और जेंटामाइसिन तीन जिला अस्पतालों (हजारीबाग, पलामू और राँची) में उपलब्ध नहीं थे।
  • नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में आवश्यक उपभोग्य वस्तुएं जैसे ड्रॉ शीट्स, पहचान टैग और टांके के लिए धागे उपलब्ध नहीं थे। दो जिला अस्पतालों (पूर्वी सिंहभूम और हजारीबाग) में बेबी रैपिंग शीट्स उपलब्ध नहीं थे और तीन जिला अस्पतालों (देवघर, हजारीबाग और पलामू) में नासोगैस्ट्रिक ट्यूब उपलब्ध नहीं थे।
  • नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के प्रसूति आईपीडी में आवश्यक उपकरण नहीं थे। नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में अधिकांश मामलों में पार्टोग्राफ, जो जन्म परिचारक को प्रसूति की जटिलताओं को तुरंत पहचानने और प्रबंधित करने में सक्षम बनाता है, चित्रित नहीं किए गए थे।
  • नमूना जाँचित तीन जिला अस्पतालों (पूर्वी सिंहभूम, रामगढ़ और राँची) में बारह बिस्तरों वाली विशेष नवजात देखभाल इकाइयों (एसएनसीयू) के लिए उपकरणों की खरीद जून 2020 तक प्रक्रियाधीन थी।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में यह देखा गया कि 77 से 89 प्रतिशत माताओं को प्रसव के 48 घंटों के भीतर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी और इस तरह प्रसवोत्तर जटिलताओं का तत्काल प्रबंधन सुनिश्चित नहीं किया गया था।
  • नमूना जाँचित 362 मामलों में से 310 पात्र लाभार्थियों को 2016-19 के दौरान प्रसव के एक महीने बाद जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) के तहत नकद सहायता का भुगतान किया गया था, जिसमें 97 लाभार्थियों को छः महीने से अधिक समय के बाद भुगतान किया गया था। आगे आठ लाभार्थियों को मार्च, 2020 तक भुगतान नहीं किया गया था। नकद सहायता के विलंबित भुगतान/ भुगतान न करने ने योजना के उद्देश्यों को विफल कर दिया।
  • नमूना जाँचित छ: जिला अस्पतालों में 2014-19 के दौरान मृत जन्म दर 1.08 और 3.89 प्रतिशत के बीच थी। तीन जिला अस्पतालों (पलामू, देवघर और हजारीबाग) में मृत जन्म दर उच्च (2.09 और 3.89 प्रतिशत के बीच) थी, जो एक प्रतिशत की औसत राज्य दर और 0.7 प्रतिशत की औसत राष्ट्रीय दर से काफी अधिक थी।

संक्रमण नियंत्रण

जिला अस्पतालों के कामकाज में संक्रमण नियंत्रण पद्धति को पर्याप्त रूप से अंतर्निहित नहीं किया गया था। जिला अस्पतालों में स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण; चिकित्सा उपकरणों का कीटाणुशोधन और विसंक्रमण, यंत्रों एवं उपकरणों इत्यादि के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी)/चेकलिस्ट का अभाव था। संक्रमण नियंत्रण पद्धतियाँ ज्यादातर उबालने और ऑटोक्लेविंग तक ही सीमित थीं। जिला अस्पतालों में तरल रासायनिक विसंक्रमण और उच्च स्तरीय कीटाणुशोधन सुविधाओं का भी अभाव था।

  • पूर्वी सिंहभूम को छोड़कर नमूना जाँचित पाँच जिला अस्पतालों में हाउसकीपिंग के लिए एसओपी उपलब्ध नहीं था। आउटसोर्सिंग के बावजूद नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में सफाई सेवाएँ संतोषजनक स्तर की नहीं थीं, जो जिला अस्पताल के कार्यात्मक क्षेत्रों के पर्याप्त कीटाणुरहित करने को सुनिश्चित करने में अस्पताल प्रशासन की ओर से निगरानी की कमी को दर्शाता है।
  • नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में केवल दो से चार प्रकार के लिनेन जिनमें मुख्य रूप से चादरें और कंबल शामिल थे, पर्याप्त संख्या में उपलब्ध थे। दो से 11 प्रकार के लिनेन में कमी थी जिसमें टेबल क्लॉथ, ओटी कोट, ओवरकोट आदि शामिल थे, जबकि छः से 17 प्रकार के लिनेन जिसमें बेडस्प्रेड, ड्रॉ शीट, ओवरशू जोड़ी आदि शामिल थे, नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में उपलब्ध नहीं थे। लॉन्ड्री सेवाएँ भी अत्यधिक अपर्याप्त थीं क्योंकि नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के परिसर में मशीनीकृत लॉन्ड्री के माध्यम से लिनेन की धुलाई नहीं हुई थी, जैसा कि "कायाकल्प" के दिशानिर्देशों के तहत परिकल्पित किया गया था। वार्डों से गंदा लिनेन ले जाने के लिए ढकी हुई ट्रॉलियों का भी अभाव देखा गया। आगे नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के वार्डों में धुले हुए लिनेन को सुरक्षित रूप से रखने के लिए कोई अलमीरा या ढ़के हुए रैक नहीं थे, जिससे रोगियों को अस्पताल से संक्रमित होने  की संभावना बढ़ गई।
  • जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन करते हुए तरल रासायनिक अपशिष्ट को बिना पूर्व उपचार के सीधे नालियों में छोड़ा जा रहा था।

औषधि प्रबंधन

राज्य में औषधि क्रय प्रक्रिया प्रणालीगत समस्याओं के साथ-साथ निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं करने जैसे कि परीक्षण में देरी के परिणामस्वरूप औषधियों की अवधि समाप्ति,  आपूर्ति की गई औषधियों के गुणवत्ता आश्वासन का पालन नहीं  करना, आवश्यक औषधियों की क्रय नहीं करना आदि से प्रभावित थी।

  • झारखण्ड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (जेएमएचआईडीपीसीएल) ने औषधियों के क्रय पर  100.31 करोड़ के राज्य निधि में से  87.85 करोड़ (88 प्रतिशत) की राशि का उपयोग नहीं कर सका, जिसे विभाग को वापस (जून 2020) कर दिया गया था। आगे 2016-19 के दौरान औषधियों के क्रय  के लिए उपलब्ध एनएचएम निधियों में से केवल  40.54 करोड़ (79 प्रतिशत) व्यय किए गए थे और शेष  12.24[3] करोड़ जेएमएचआईडीपीसीएल के बैंक खाते में पड़े थे।
  • जेएमएचआईडीपीसीएल द्वारा औषधियों की केंद्रीकृत क्रय के अभाव में नमूना जाँचित जिला अस्पतालों ने गुणवत्ता परीक्षण के बिना ही स्थानीय विक्रेताओं से औषधियाँ खरीदीं।
  • नमूना जाँचित जिला अस्पतालों के पास 2017-19 के दौरान केवल 11 से 23 प्रतिशत आवश्यक औषधियाँ उपलब्ध थीं। आवश्यकता की तुलना में औषधियों की कम खरीद के कारण उपलब्ध औषधियाँ भी अधिक अवधि के लिए स्टॉक से बाहर हो गईं थी ।
  • नमूना जाँचित जिला अस्पतालों ने औषधियों के भंडारण के मानदंडों का पालन नहीं किया, जो सीधे तौर पर प्रभावशीलता की हानि और औषधियों के जीवनकाल से जुड़ी थी। हानिकारक औषधियों के भंडारण के लिए निर्धारित सुरक्षा मानदंडों का भी पालन नहीं किया गया था।

भवन अवसंरचना

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए, पर्याप्त और उचित रूप से अनुरक्षित भवन अवसंरचना का अत्यधिक महत्व है। तथापि, निष्पादन लेखापरीक्षा में अस्पताल की भवन अवसंरचना की उपलब्धता और निर्माण में अपर्याप्तता और कई कमियाँ उद्घाटित हुई:

  • 2014-15 और 2018-19 के दौरान, नमूना जाँचित जिला अस्पतालों में आवश्यक बिस्तरों की कमी क्रमशः 61 और 88 प्रतिशत तथा 57 और 86 प्रतिशत के बीच थी। ये कमी जनसंख्या में वृद्धि की गति के साथ अतिरिक्त बिस्तरों की स्वीकृति नहीं देने के कारण थी।
  • सरकार ने जिला अस्पताल, राँची के लिए 500 बिस्तरों वाले अस्पताल भवन के निर्माण का निर्णय (अगस्त 2007) लिया। तथापि, निर्माण कार्य के बीच में रुकने  (जुलाई 2013) तथा शेष कार्य को पूरा करने के उपरांत पीपीपी मोड पर अस्पताल संचालित करने के लिए निजी भागीदारों को आकर्षित करने में विफल रहने के कारण, 500 बिस्तरों वाला अस्पताल भवन निर्माण कार्य शुरू होने के 12 वर्षों से अधिक अवधि के बाद भी अकार्यरत रहा।
  • विभाग द्वारा जिला अस्पताल, रामगढ़ के लिए 4.89 करोड़ की लागत से एक नया 100 बिस्तरों वाला अस्पताल भवन स्वीकृत (जून 2008) किया गया था। तथापि, ₹  3.00 करोड़ के व्यय के बाद निर्माण कार्य में लगे अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप के कारण निर्माण कार्य रुक गया (जून 2013)। कार्य पुन: प्रारंभ नहीं किया गया (जून 2020) एवं जिला अस्पताल, रामगढ़ अप्रैल 2016 से मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य केन्द्र के भवन में कार्यरत था।
  • सभी 24 जिलों में  1.35 करोड़ प्रत्येक की लागत से फर्नीचर एवं उपकरणों की आपूर्ति के साथ 10 बिस्तरों वाली बर्न इकाइयों का निर्माण स्वीकृत (अगस्त 2014) किये गए थे। इनमें से चार इकाइयों को छोड़ (जनवरी 2016) दिया गया था और 20 इकाइयों को 12.40 करोड़ के लागत से (सितंबर 2015 और जनवरी 2017 के बीच) पूर्ण किया गया। हालाँकि, उपकरणों के क्रय नहीं होने के कारण पूर्ण इकाइयों को भी क्रियाशील नहीं किया जा सका।
 

[1]   देवघर, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा, बोकारो, सिमडेगा, साहिबगंज, पलामू और पश्चिमी सिंहभूम

[2]   देवघर, हजारीबाग, पलामू, रामगढ़ और राँची

[3]   अव्ययित शेष में ₹ 1.34 करोड़ का ब्याज शामिल है।

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