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झारखंड

प्रतिवेदन संख्‍या 1 वर्ष 2021 - सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित सामान्‍य, सामाजिक, आर्थिक एवं राजस्व प्रक्षेत्र, झारखण्‍ड सरकार

दिनांक जिस पर रिपोर्ट की गई है:
Wed 08 Sep, 2021
शासन को रिपोर्ट भेजने की तिथि:
सरकार के प्रकार:
राज्य
क्षेत्र कृषि एवं ग्रामीण विकास,कला, संस्कृति एवं खेल,सामाजिक कल्याण,सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर,शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,परिवहन एवं इंफ्ररास्ट्राकचर,कर एवं शुल्क

अवलोकन

31 मार्च 2019 को समाप्‍त हुए वर्ष के लिए झारखण्‍ड सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सहित सामान्‍य, सामाजिक, आर्थिक एवं राजस्व प्रक्षेत्रों पर भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के लेखापरीक्षा प्रतिवेदन को राज्य के विधानसभा के पटल पर दिनांक 08 सितम्बर 2021 को रखा गया।

सामान्‍य, सामाजिक एवं आर्थिक प्रक्षेत्र

झारखण्ड में मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना का कार्यान्वयन

विभाग ने न तो कोई परिचालन मार्गदर्शिका तैयार की थी और न ही ग्रामीण सड़कों में अपाटित कमियों के आकलन हेतु कोई सर्वेक्षण किया था। यद्यपि विभाग ने योजना के प्रबंधन के लिये परिपत्रों/पत्रों के माध्यम से निर्देश जारी किया था तथा उसके पास प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (प्र.मं.ग्रा.स.यो.) के तहत एक जिला ग्रामीण सड़क योजना (जि.ग्रा.स.यो.) थी, जिसमें ग्रामीण सड़क नेटवर्क की कमियों की सूचना थी, इनका पालन नहीं किया गया।

इस योजना के तहत पुलों का चयन, बिना उनकी व्यवहार्यता की जाँच किये अथवा जि.ग्रा.स.यो. में वर्णित अपाटित कमियों को ध्यान में रखे, सांसदों/विधायकों/अन्य की सिफारिशों पर किया गया था। परिणामस्वरूप, पुलों का निर्माण जि.ग्रा.स.यो. के प्रक्षेत्र से बाहर, ऐसे स्थानों पर, जहाँ एक कि.मी. के भीतर समान/ नजदीकी रिहायशों को जोड़ने हेतु दूसरी योजनाओं के तहत पुल पहले से थे तथा नगरपालिका क्षेत्र में किया गया। 

मार्च 2019 तक राज्य के 208 अधूरे पुल-कार्यों में से, 39 पुलों का निर्माण उनके पूर्ण होने की निर्धारित अवधि के छ: महीने से साढ़े-नौ वर्ष बीतने के बावजूद पूरा नहीं हो सका था।

विभाग के पास विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (डीपीआर) को तैयार करने हेतु परामर्शियों को नियुक्ति की कोई परिचालन मार्गदर्शिका नहीं थी। परिणामस्वरूप, नए परामर्शियों के प्रवेश के बिना किसी गुंजाइश के खुली अवधि के लिए सूचीबद्ध परामर्शियों की नियुक्ति करके और दंड प्रावधानों, मूल्यांकन मापदंडों के आधार पर परामर्शियों के प्रदर्शन की समीक्षा, स्वतंत्र संस्था द्वारा डीपीआर की समीक्षा इत्यादि की अनुपस्थिति के द्वारा सूचीबद्ध परामर्शियों को अनुचित लाभ दिया गया। 

परामर्शियों ने आवश्यक भू-तकनीकी जाँच, जल विज्ञान संबंधी तथा यातायात आँकड़ों का विश्लेषण नहीं  किया था। परिणामस्वरूप, नमूना जाँचित 42 पुलों में से, ₹ 52.12 करोड़ की लागत से बने आठ पुल बाद में पूर्ण अथवा आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए।

पहुँच-पथों की रूपरेखा बनाने में, परामर्शियों ने 16 पुलों के आगमन/निकास बिन्दु पर तीखे मोड़ (90 डिग्री तक) दे दिये तथा 28 पुलों के पहुँच-पथ की चौड़ाई पुल की चौड़ाई (7.5 मीटर) की तुलना में कम (3.75 मीटर से 4.1 मीटर तक) कर दी। परामर्शियों ने 33 नमूना जाँचित पुल कार्यों में त्रुटि एवं क्षति हेतु ₹ 2.41 करोड़ मूल्य के पाँच प्रतिशत इस्पात का अतिरिक्त प्रावधान भी किया था।

निविदा और इकरारनामा के दस्तावेज संवेदकों के पक्ष में था, जैसे कि पुलों का दोष दायित्व अवधि कम करना आदि।

छ: पुलों में ₹ 52.0 7 करोड़ मूल्य के निम्न गुणवत्तापरक कार्यों के निष्पादन के लिये कोई दायित्व निर्धारण नहीं किया गया था।

पूर्ण पुलों के सावधिक रखरखाव के अभाव में संयुक्त भौतिक सत्यापन के दौरान पुलों के नींव में कटाव, विस्तार जोड़ों एवं वेअरिंग कोट में टूट-फूट, कंक्रीट कार्यों में दरार और इलास्टोमेरिक बेयरिंग में क्षति, रेलिंग, फुटपाथ, पहुँच-पथ और फ्लैंकों आदि में क्षति पाई गयी। 

लेखापरीक्षा कंडिकाएं 

फर्जी बैंक जमानत तथा फर्जी होने का संदेहास्पद मुख्तारनामा के आधार पर कार्य आवंटन होने के कारण ₹ 13.24 करोड़ का कपटपूर्ण भुगतान तथा सरकारी धन का नुकसान हुआ। 

पथ निर्माण विभाग द्वारा ह.क.च. सड़क के एक हिस्से के चौड़ीकरण एवं सुदृढीकरण कार्य तथा साथ ही उसी सड़क के डीपीआर तैयार करने की अविवेकपूर्ण स्वीकृति देने के कारण फिर से अलकतरा बिछाने के कार्य पर ₹ 5.03 करोड़ का परिहार्य व्यय हुआ।

जिला कल्याण कार्यालय (जि.क.का.), चतरा की गतिविधियों की निगरानी तथा आंतरिक नियंत्रण उपायों को लागू करने में कल्याण विभाग की विफलता के फलस्वरूप जिला कल्याण पदाधिकारी (जि.क.पदा.), चतरा द्वारा रोकड़िया की मिलीभगत से ₹ 13.59 करोड़ का गबन किया गया। 

दो पौधशालाओं के संचालन हेतु उनके निर्माण के चार वर्ष से अधिक समय के बाद भी परिचालन लागत के अलावा पानी एवं बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने में विभाग की विफलता के कारण ₹ 2.78 करोड़ का निष्फल व्यय हुआ।

विभाग सूकर प्रजनन नाभिक (पी.बी.एन.) इकाई को परिचालित करने हेतु निधि निर्गत करने, उपग्रहीय क्षेत्र प्रजनन इकाईयों की स्थापना करने तथा सूकर विकास योजना का कार्यान्वयन करने में, शुरुआत से सात वर्ष से अधिक अवधि बीत जाने के बावजूद, विफल रहा। ₹ 1.59 करोड़ की लागत से निर्मित पी.बी.एन इकाई के सूकर शेड दिसंबर 2014 से निष्क्रिय पड़े थे।

भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पूरा किए बिना चरकी पहाड़ी मध्यम सिंचाई योजना पर काम शुरू करने के कारण ₹ 1.30 करोड़ का निष्क्रिय व्यय हुआ तथा ₹ 3.93 करोड़ का अवरोधन हुआ।

राजस्व प्रक्षेत्र

परिवहन विभाग, झारखण्ड में मोटर वाहन कर और शुल्क का निर्धारण एवं संग्रहण पर निष्पादन लेखापरीक्षा

एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर में प्रावधानों को गलत साथ ही साथ विलंब से सम्मिलित करने के कारण 2,633 वैयक्तिक वाहनों से ₹ 5.54 करोड़ एकमुश्त कर कम आरोपित हुआ और 189 वैयक्तिक वाहनों से ₹ 59.32 लाख अधिक वसूली हुई। 

संशोधित प्रावधान को एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर में पाँच दिन विलंब से सम्मिलित करने के कारण 434 वाहनों से ₹ 8.68 लाख अस्थायी कर का कम आरोपण हुआ।

15,507 परिवहन वाहनों के धुरी भार में संशोधन नहीं होने के फलस्वरूप ₹ 6.95 करोड़ कर का अवनिर्धारण। 

जिला परिवहन पदाधिकारियों ने अनियमित रूप से निबंधन प्रमाण-पत्र में उन वित्तपोषकों के पक्ष में किराया क्रय/बंधक अनुबंध पृष्ठांकित किया, जिन्होंने व्यापार प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं किये थे। 

दुरुस्ती प्रमाण-पत्र वैधता की समाप्ति पता लगाने के तंत्र के अभाव में 6,498 परिवहन वाहनों से दुरुस्ती प्रमाण-पत्र नवीकरण का शुल्क एवं शास्ति के रूप में ₹ 22.82 करोड़ का निर्धारण नहीं हुआ। 

वैयक्तिक वाहनों की निबंधन वैधता समाप्ति के उपरांत नवीनीकरण नहीं कराने के कारण 829 वाहनों से ₹ 2.94 करोड़ राजस्व का निर्धारण नहीं हुआ। 

अंतर-विभागीय डाटा/सूचना आदान-प्रदान तंत्र के अभाव में 174 सामान्य वाहक अनिबंधित रह गये, जिसके फलस्वरूप ₹ 33.06 लाख शुल्क का आरोपण नहीं हुआ। 

9,260 प्रमादी परिवहन वाहन मालिकों से कर और अर्थदण्ड के रूप में वसूलनीय 

₹ 74.57 करोड़ का उदग्रहण जिला परिवहन पदाधिकारियों द्वारा नहीं किया गया। 

एक-मुश्त कर के दायरे में लाये गए 30,262 वाहनों से एक-मुश्त कर और अर्थदण्ड के रुप में वसूलनीय ₹ 44.37 करोड़ का उदग्रहण जिला परिवहन पदाधिकारियों द्वारा नहीं किया गया।   

राष्ट्रीय परमिट वैधता के दौरान 1,515 राष्ट्रीय परमिट धारकों का अनुवर्त्ती प्राधिकार नहीं किया गया जिसके फलस्वरूप ₹ 6.73 करोड़ समेकित और प्राधिकरण शुल्क का उदग्रहण नहीं हुआ।  

परस्परिक समझौते के तहत परिचालित प्रमादी वाहनों पर निगरानी तंत्र के अभाव में 108 वाहनों से ₹ 1.66 करोड़ कर और अर्थदण्ड की वसूली नहीं हुई। 

दुरुस्ती प्रमाण-पत्र निर्गत/नवीकरण शुल्क के साथ सेवा कर/जी.एस.टी. की संग्रहित राशि 

₹ 7.59 करोड़ को समुचित शीर्ष में जमा नहीं किया गया। 

झारखण्ड में विद्युत शुल्क का आरोपण एवं संग्रहण का तंत्र पर लेखापरीक्षा

लाइसेंसधारियों से डाटा/सूचना प्राप्त करने के तंत्र के अभाव में, वा.क.वि. 550 अनिबंधित थोक उपभोक्ताओं की पहचान करने में विफल रहा। इसके परिणामस्वरूप ₹ 16.57 करोड़ के विद्युत शुल्क तथा ₹ 22.40 करोड़ के अर्थदण्ड का आरोपण नहीं हुआ।

वास्तविक खपत की सूचना के साथ विवरणियों को सत्यापित करने के तंत्र की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप 482.31 करोड़ यूनिट की विद्युत ऊर्जा को छुपाया गया और परिणामस्वरूप ₹ 24.85 करोड़ के विद्युत शुल्क तथा ₹ 28.87 करोड़ अर्थदण्ड का कम आरोपण।

लाइसेंसधारियों के बीच ऊर्जा के हस्तांतरण की सूचना के साथ विवरणियों को सत्यापित करने के तंत्र की अनुपस्थिति के फलस्वरूप 1005.51 करोड़ यूनिट की अधिक छूट की अनुमति दी गई और परिणामस्वरूप   ₹ 120.16 करोड़ के अर्थदण्डसहित  ₹ 270.99 करोड़ के बिजली शुल्क का कम आरोपण हुआ।

निर्धारण प्राधिकारियों ने शुल्क निर्धारण को अन्तिम रूप देते समय अभिलेखों में उपलब्ध दस्तावेजों से विवरणियों का सत्यापन नहीं किया जिसके कारण  ₹  640.12 करोड़ विद्युत् शुल्क एवं अर्थदंड का अवनिर्धारण हुआ।

निर्धारण प्राधिकारियों ने शुल्क निर्धारण को अन्तिम रूप देते समय दरों की अनुसूची से विद्युत शुल्क की दरों का सत्यापन नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप अर्थदण्ड सहित  ₹ 316.79 करोड़ के विद्युत शुल्क का कम आरोपण हुआ।

अन्य अवलोकन 

वाणिज्य कर विभाग

निर्धारण प्राधिकारियों ने कर निर्धारणों को अंतिम रूप देते समय प्रपत्र सी, एफ और अन्य अभिलेखों के उपयोग के साथ विवरणियों का प्रति-सत्यापन नहीं किया जिसके कारण ₹ 25.99 करोड़ के कर और अर्थदण्ड का कम निर्धारण हुआ।

निर्धारण प्राधिकारी ने अभिनिश्चित के अयोग्य श्रम और अन्य सदृश प्रभार को अस्वीकार कर दिया लेकिन निर्धारित करदेय आवर्त पर आरोप्य 14 प्रतिशत के बजाय पाँच प्रतिशत की दर से करारोपण किया जिसके परिणामस्वरूप ₹ 4.39 करोड़ कर का कम आरोपण हुआ।

निर्धारण प्राधिकारियों ने ₹ 5.51 करोड़ के आई.टी.सी. के समायोजन को अस्वीकृत कर दिया। तथापि, अस्वीकृत आई.टी.सी. पर ₹ 3.97 करोड़ के ब्याज का आरोपण नहीं किया गया।

उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग

विभाग ने न्यूनतम प्रत्याभूत मात्रा के उठाव को सुनिश्चित करने के लिये कोई कारवाई नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल 2016 और जूलाई 2017 के बीच चार उत्पाद जिलों में 496 डिलरों द्वारा शराब का कम उठाव हुआ और उत्पाद शुल्क ₹ 22.46 करोड़ के हानि के समतुल्य अर्थदण्ड का आरोपण नहीं हुआ। 

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम

ऊर्जा क्षेत्र के पीएसयू का प्रदर्शन 

इन पाँच विद्युत् क्षेत्र के पीएसयू की कुल हानि, वर्ष 2014-15 के ₹ 1,518.39 करोड़ के सापेक्ष वर्ष 2018-19 में ₹ 479.44 करोड़ रहा। विद्युत् क्षेत्र के पीएसयू के वर्ष 2018-19 के लेखाओं के अनुसार, एक पीएसयू ने ₹ 92.57 करोड़ का लाभ कमाया तथा चार पीएसयू को ₹ 572.01 करोड़ की हानि हुई एवं तीन गैर-कार्यरत पीएसयू ने अभी तक परिचालन/ वाणिज्यिक उत्पादन शुरू नहीं किया था। शीर्ष लाभ (₹ 92.57 करोड़) कमाने वाली कंपनी तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड थी, जबकि झारखंड उर्जा संचार निगम लिमिटेड ₹ 358.27 तथा झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड को ₹ 212.17 करोड़ की ठोस हानि हुई।

कुल मिलाकर, 31 मार्च 2019 तक पाँच विद्युत् क्षेत्र के पीएसयू में ₹ 4,235.32  करोड़ के पूंजी निवेश के मुकाबले ₹ 6,744.16  करोड़ की संचित हानि हुई। पाँच कार्यरत ऊर्जा क्षेत्र के पीएसयू में झारखंड विद्युत् वितरण निगम लिमिटेड (₹ 1,918.33 करोड़) तथा तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड (₹ 1,013.63 करोड़) का सकल मूल्य पूर्ण रूप से समाप्त हो गए थे।

लेखाओं की गुणवत्ता

बिजली क्षेत्र के पीएसयू के लेखाओं की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। 01 मई 2018 से 31 दिसंबर 2019 के दौरान, चार पीएसयू के वर्ष 2011-12 और 2017-18 के नौ अंकेक्षित लेखाओं को अंतिम रूप दिया गया था। सांविधिक लेखापरीक्षकों ने सात लेखाओं के लिए विशिष्टताओं, एक लेखाओं के लिए प्रतिकूल तथा एक लेखाओं के लिए अस्वीकरण के साथ प्रमाणपत्र जारी किए थे। सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा लेखा मानकों का अनुपालन घटिया रहा क्योंकि सांविधिक लेखापरीक्षकों ने दो सार्वजनिक उपक्रमों के दो लेखाओं में भारतीय लेखा मानकों के अनुपालन न करने के तीन उदाहरण उद्धृत किए थे।

राज्य के पीएसयू  (गैर-ऊर्जा क्षेत्र) का प्रदर्शन 

16 कार्यरत  राज्य पीएसयू में से, नौ पीएसयू ने ₹ 37.25 करोड़ का लाभ कमाया और सात पीएसयू ने ₹ 11.62 करोड़ का घाटा उठाया। सात गैर-ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों ने अभी तक अपने पहले लेखे प्रस्तुत नहीं किए थे। शीर्ष लाभ कमाने वाली कंपनीयां झारखंड राज्य पेय पदार्थ निगम लिमिटेड (₹ 11.95 करोड़), झारखंड राज्य वन विकास निगम लिमिटेड (₹ 5.90 करोड़) और ग्रेटर रांची डेवलपमेंट एजेंसी (₹ 8.86 करोड़) थीं जबकि झारक्राफ्ट (₹ 4.62 करोड़) और झालको (₹ 3.65 करोड़) को घाटा हुआ था।

लेखाओं की गुणवत्ता

पीएसयू के लेखाओं की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। 01 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2019 के दौरान महालेखाकार को भेजे गए 10 लेखाओं में से, सांविधिक लेखापरीक्षकों ने 8 लेखाओं के संबंध में विशिष्टताओं एवं दो लेखाओं में अस्वीकरण के साथ प्रमाणीकरण जारी किया। तीन लेखाओं में लेखा मानकों के अनुपालन न करने के पाँच उदाहरण थे।

झारखंड पर्यटन विकास निगम लिमिटेड द्वारा परिसंपत्तियों के प्रबंधन पर लेखापरीक्षा 

पर्यटन के समेकित विकास तथा विपणन के लिए मास्टर प्लान तैयार नहीं किया गया, पर्यटन क्षमताओं के समुचित उपयोग करने के लिए प्रत्येक जिले की पर्यटन की संभावित क्षमता का विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया तथा झारखंड पर्यटन नीति 2015 के इसे लागू किए जाने के चार वर्ष से अधिक का समय बीतने पर भी पर्यटन इकाईयों के लिए न्यूनतम मानक तय नहीं किए गए।

₹ 39.62 करोड़ की लागत से निर्मित (2004 एवं 2018 के बीच) 29 परिसंपत्तियां गैर-परिचालित अथवा आंशिक रूप से परिचालित रहा।

दूर-दराज स्थान, घटिया प्रबंधन तथा आधारभूत साधनों/ सुविधाओं की कमी के कारण शैया-अधिभोग कम रहा।

इकरारनामों के नियमों एवं शर्तों को लागू करने में कंपनी विफल रही जिसके कारण डेवलपर्स को अनुचित लाभ हुआ।

निगरानी में कमी के कारण परिसंपत्तियों का अनियमित व्यवसायीकरण, परिसंपत्तियों की बीमा सुनिश्चित करने में विफलता, स्थानीय लोगों द्वारा परिसंपत्तियों का अवैध संचालन, अतिक्रमण आदि हुआ।

खराब वित्तीय प्रबंधन के कारण, जेटीडीसी न तो विभाग द्वारा विज्ञापनों/ प्रोत्साहनों के लिए प्रदत्त निधि का उपयोग कर सका और न ही बकाया किराया/ लाइसेंस शुल्क/ क्षति शुल्क उगाही कर सका।

लेखापरीक्षा कंडिकाएं

झारखण्ड उर्जा संचरण निगम लिमिटेड भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का पूर्णरूपेण अनुपालन करने में विफल रहा जिसके कारण ₹ 17.89 करोड़ के श्रमिक कल्याण उपकर की कम कटौती हुई।

झारखण्ड उर्जा संचरण निगम लिमिटेड द्वारा उपयोगकर्ताओं से राज्य भार प्रेषण केंद्र के संचालन के लिए शुल्क एवं प्रभार वसूलने में विफलता के कारण ₹ 12.18 करोड़ की हानि हुई।

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