डीपीसी अधिनियम-भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्तव्य , शक्तियां और सेवा की शर्तें


अध्याय-III नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्तव्य एवं शक्तियां

नियत्रंक-महालेखापरीक्षक द्वारा संघ एवं राज्यों के लेखाओं का संकलन करना
10.
  1. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक निम्नलिखित के लिये जिम्मेदार होगा, अर्थातः-
    1. संघ और हर एक राज्य के लेखाओं का संकलन उन प्रारम्भिक और सहायक लेखाओं से करना जो ऐसे लेखाओं के रखने के लिये जिम्मेदार खजानों, कार्यालयों या विभागों द्वारा उसके नियंत्रण के अधीन लेखापरीक्षा और लेखा कार्यालयों को दिये जाएं; और
    2. खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी के संबंध में ऐसे लेखाओं को रखना जो आवश्यक हों:

परन्तु राष्ट्रपति, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चा त् आदेश द्वारा, उसे निम्नलिखित का संकलन करने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर सकेगा-

  1. संघ के उक्त लेखे (या तो तत्काल या विभिन्न आदेश जारी करके धीरे-धीरे); अथवा
  2. संघ की किन्हीं विशिष्ट सेवाओं अथवा विभागों के लेखे:

परन्तु यह और कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन से और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चाित् आदेश द्वारा, उसे निम्नलिखित का संकलन करने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर सकेगा।

  1. राज्य के उक्त लेखे (या तो तत्काल या विभिन्न आदेश जारी करके धीरे धीरे); अथवा
  2. राज्य की किन्हीं विशिष्ट सेवाओं अथवा विभागों के लेखे:

परन्तु यह भी कि राष्ट्रपति, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चात् आदेश द्वारा उसे किसी विशिष्ट वर्ग या प्रकार के लेखाओं को रखने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर सकेगा।

  • जब, किसी व्यवस्था के अधीन, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से भिन्न कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व, निम्नलिखित के लिये जिम्मेदार रहा है, अर्थात् –
  1. संघ या किसी राज्य की किसी विशिष्ट सेवा या विभाग के लेखाओं का संकलन करना; अथवा
  2. किसी विशिष्ट वर्ग या प्रकार के लेखाओं को रखना, तब ऐसी व्यवस्था, उपधारा (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी तब तक प्रवृत्त बनी रहेगी जब तक कि नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चाुत् वह खंड (i) में निर्दिष्ट दशा में यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के आदेश द्वारा और खंड (ii) में निर्दिष्ट दशा में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा प्रतिसंहृत नहीं कर दी जाती।
नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का लेखाओं को तैयार करना और राष्ट्रपति को, राज्यों के राज्यपालों को और जिन संघ राज्यक्षेत्रों में विधान सभाएं है उनके प्रशासकों को भेजना।

11. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक अपने द्वारा या सरकार द्वारा या उस निमित्त जिम्मेदार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संकलित किये गये लेखाओं से, हर वर्ष, संबद्ध शीर्षकों के अधीन संघ के प्रत्येक राज्य के और प्रत्येक ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के, जिसमें विधान सभा है, प्रयोजनों के लिए, वार्षिक प्राप्तियां और संवितरण दिखाने वाले लेखे (जिनके अंतर्गत, उसके द्वारा संकलित लेखाओं की दशा में, विनियोग लेखे भी है), तैयार करेगा और उन लेखाओं को यथास्थिति, राष्ट्रपति को या राज्यपाल या जिस संघ राज्यक्षेत्र में विधान सभा है, उसके प्रशासक को ऐसी तारीखों को या उनके पूर्व जो वह संबद्ध सरकार की सहमति से अवधारित करे, भेजेगाः

परन्तु राष्ट्रपति, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चात् आदेश द्वारा, उसे संघ के अथवा ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के, जिसमें विधान सभा है, प्रयोजन के लिये वार्षिक प्राप्तियों और संवितरणों से संबंधित लेखे तैयार करने और भेजने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर सकेगा।

परन्तु यह और कि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन से और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चाित् आदेश द्वारा, उसे उस राज्य के प्रयोजन के लिये वार्षिक प्राप्तियों और संवितरणों से संबंधित लेखे तैयार करने और भेजने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर सकेगा।

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का संघ और राज्यों को जानकारी देना और उनकी सहायता करना

12. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, जहां तक कि वह उन लेखाओं से जिनके संकलन या रखे जाने के लिये वह जिम्मेदार है समर्थ हो, यथास्थिति, संघ सरकार को, राज्य सरकारों को और उन संघ राज्यक्षेत्रों की सरकारों को जिनमें विधान सभाएं है ऐसी जानकारी देगा जिसकी वे समय-समय पर अपेक्षा करें और उनके वार्षिंक वित्तीय विवरणों की तैयारी में ऐसी सहायता करेगा जिसकी वे उचित रूप से मांग करे।

लेखापरीक्षा के संबंध में साधारण प्रावधान

13. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का यह कर्तव्य होगा कि वह –
  1. भारत की और प्रत्येक राज्य की और प्रत्येक ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में से किये गये व्यय की लेखापरीक्षा करे और यह अभिनिश्चि,त करे कि क्या वे धनराशियां जो लेखाओं में संवितरित की गई दिखाई गई है, उस सेवा या प्रयोजन के लिये जिसके लिये वे लागू की गई या प्रभावित की गई है वैध रूप से उपलब्ध या लागू थीं और क्या वह व्यय उसे शासित करने वाले प्राधिकार के अनुरूप है;
  2. आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं के संबंध में संघ और राज्यों के सभी संव्यवहारों की लेखापरीक्षा करे;
  3. संघ के या किसी राज्य के किसी विभाग में रखे गये सभी व्यवसाय, विनिर्माण, लाभ और हानि लेखाओं तथा तुलनपत्रों और अन्य सहायक लेखाओं की लेखापरीक्षा करे/और हर एक दशा में अपने द्वारा इस प्रकार लेखापरीक्षित व्यय, संव्यवहारों या लेखाओं की बाबत रिपोर्ट दे।
संघ या राज्य के राजस्वों से पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकायों या प्राधिकरणों की प्राप्तियों तथा व्यय की लेखापरीक्षा

14

  1. जहां किसी निकाय या प्राधिकरण का पर्याप्त वित्तपोषण भारत की या किसी राज्य की या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में से अनुदानों या उधारों से किया जाता है, वहां नियंत्रक-महालेखपरीक्षक, यथास्थिति, उस निकाय या प्राधिकरण को लागू तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उस निकाय या प्राधिकरण की सभी प्राप्तियों तथा व्यय की लेखापरीक्षा करेगा और इस प्रकार अपने द्वारा लेखापरीक्षित प्राप्तियों और व्यय की बाबत रिपोर्ट देगा।

    स्पष्टीकरण: - जहां भारत की या किसी राज्य की या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में से किसी निकाय या प्राधिकरण को दिया गया अनुदान या उधार किसी वित्तीय वर्ष में पचीस लाख5 रूपये से कम नहीं है और ऐसे अनुदान या उधार की रकम उस निकाय या प्राधिकरण के कुल व्यय के पचहत्तर प्रतिशत से कम नहीं है, वहां इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये यह समझा जाएगा कि उस निकाय या प्राधिकरण का पर्याप्त वित्तपोषण, यथास्थिति, ऐसे अनुदानों या उधारों से किया जाता है।

  2. उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, यथास्थिति, राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या ऐसे संघ राज्य क्षेत्र के, जिसमें विधान सभा है, प्रशासक के पूर्व अनुमोदन से किसी निकाय या प्राधिकरण को, जहां ऐसे निकाय या प्राधिकरण को, यथास्थिति भारत की या किसी राज्य की या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की, जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में से किसी वित्तीय वर्ष में दिए गए अनुदान या उधार एक करोड़ रूपये से कम नहीं है, वहां सभी प्राप्तियों और व्यय की लेखापरीक्षा कर सकेगा।
  3. जहां किसी निकाय या प्राधिकरण की प्राप्तियों और व्यय, की उपधारा (1) या उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट बातों की पूर्ति के फलस्वरूप, किसी वित्तीय वर्ष में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा लेखापरीक्षा की जाती है वहां वह उस निकाय या प्राधिकरण की प्राप्तियों और व्यय की लेखापरीक्षा इस बात के होते हुए भी दो वर्ष की अतिरिक्त अवधि तक करता रहेगा कि उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट शर्तें उन दो बाद के वर्षों में से किसी के दौरान पूरी नहीं की जाती है।
अन्य प्राधिकरणों या निकायों को दिये गए अनुदानों या उधारों की दशा में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कार्य

15

  1. जहां भारत की या किसी राज्य की या किसी ऐसे संघ राज्य क्षेत्र की जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में से कोई अनुदान या उधार किसी विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिये किसी ऐसे प्राधिकरण या निकाय को दिया जाता है जो विदेशी राज्य या अंतर्राष्ट्रीय संगठन नहीं है वहां नियंत्रक-महालेखापरीक्षक उन प्रक्रियाओं की संवीक्षा करेगा जिनसे मंजूरी देने वाला प्राधिकारी उन शर्तों की पूर्ति के बारे में अपना समाधान करता है जिनके अधीन ऐसे अनुदान या उधार दिये गए और इस प्रयोजन के लिये उसे, उस प्राधिकरण या निकाय की बहियों और लेखाओं तक, उचित पूर्व सूचना देने के पश्चारत् पहुंच का अधिकार होगाः

    परन्तु यदि, यथास्थिति, राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के जिसमें विधान सभा है, प्रशासक की यह राय हो कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक है तो वह नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चातत् आदेश द्वारा उसे ऐसे अनुदान या उधार प्राप्त करने वाले किसी निकाय या प्राधिकरण की बाबत कोई ऐसी संवीक्षा करने से अवमुक्त कर सकेगा।.

  2. (2) उस दशा के सिवाय जबकि वह, यथास्थिति, राष्ट्रपति, किसी राज्य के राज्यपाल या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के, जिसमें विधान सभा है, के प्रशासक द्वारा ऐसा करने के लिये प्राधिकृत है, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को, उस समय जबकि वह उपधारा (1) द्वारा उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किसी ऐसे निगम की, जिसे कोई ऐसा अनुदान या उधार दिया जाता है जैसा उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, बहियों और लेखाओं तक पहुंच का अधिकार नहीं होगा यदि वह विधि, जिसके द्वारा या जिसके अधीन ऐसा निगम स्थापित किया गया है ऐसे निगम के लेखाओं की लेखापरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से भिन्न किसी अभिकरण द्वारा किये जाने का उपबन्ध करती है।
  3. परन्तु ऐसा कोई प्राधिकार तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श नहीं कर लिया जाता और जब तक संबद्ध निगम को उसकी बहियों और लेखाओं तक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को पहुंच का अधिकार देने की प्रस्थापना की बाबत अभ्यावेदन करने का समुचित अवसर नहीं दे दिया जाता।

संघ की या राज्यों की प्राप्तियों की लेखापरीक्षा

16

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का कर्त्तव्य होगा कि वह उन सभी प्राप्तियों की लेखापरीक्षा करे जो भारत की और प्रत्येक राज्य की और प्रत्येक ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की जिसमें विधान सभा है, संचित निधि में संदेय है, और अपना समाधान कर ले कि उस बारे में सभी नियम और प्रकियाएं राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आंबटन की प्रभावपूर्ण जांच पड़ताल सुनिश्चित करने के लिये परिकल्पित है और उसका सम्यक रूप से अनुपालन किया जा रहा है और इस प्रयोजन के लिये लेखाओं की ऐसे परीक्षा करें जो वह ठीक समझे और उनकी बाबत रिपोर्ट दे।

भण्डारों और स्टॉक के लेखाओं की लेखा परीक्षा

17 .नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संघ या किसी राज्य के किसी कार्यालय या विभाग में रखे गए भण्डारों या स्टॉक के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने और उनकी बाबत रिपोर्ट देने का प्राधिकार होगा।

लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की शक्तियां

18 .

  1. इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के पालन के संबंध में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को प्राधिकार होगा कि वह-
    1. संघ के या किसी राज्य के नियंत्रण के अधीन किसी लेखा कार्यालय का निरीक्षण करे जिसके अंतर्गत खजाने और प्रारम्भिक या सहायक लेखाओं को रखने के लिये जिम्मेदार ऐसे कार्यालय भी है, जो उसे लेखे भेजते है;
    2. यह अपेक्षा करे कि कोई लेखे, बहियां, कागजपत्र या अन्य दस्तावेज, जो ऐसे संव्यवहारों के बारे में हों या उनका आधार हो या उनसे अन्यथा सुसंगत हों जिन तक लेखापरीक्षा से संबंधित उसके कर्तव्यों का विस्तार है, ऐसे स्थान पर भेज दिये जाऐ जिसे वह अपने निरीक्षण के लिये नियत करे;
    3. कार्यालय के प्रभारी व्यक्ति ऐसे प्रश्नि पूछे या ऐसी टीका-टिप्पणी करे जो वह ठीक समझे और ऐसी जानकारी मांगे जिसकी उसे किसी ऐसे लेखे या रिपोर्ट की तैयारी के लिए अपेक्षा हो, जिसे तैयार करना उसका कर्तव्य है।
  2. किसी ऐसे कार्यालय या विभाग का प्रभारी व्यक्ति, जिसके लेखाओं का निरीक्षण या लेखापरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा की जानी है, ऐसे निरीक्षण के लिये सभी सुविधाएं देगा और जानकारी के लिये किए गए अनुरोधों की यथासम्भव पूरे तौर पर समुचित शीघ्रता से पूर्ति करेगा।

सरकारी कम्पनियों और निगमों की लेखापरीक्षा

19 .

  1. सरकारी कंपनियों के लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्तव्यों और शक्तियों का पालन और प्रयोग उसके द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के उपबंधों के अनुसार किया जाएगा।
  2. संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित निगमों के (जो कंपनियां न हों) लेखाओं की लेखापरीक्षा के संबंध में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्तव्यों और शक्तियों का पालन और प्रयोग उसके द्वारा संबंधित विधानों के उपबंधों के अनुसार किया जाएगा।
  3. किसी राज्य का राज्यपाल या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र, जिसमें विधान सभा है, का प्रशासक, जब उसकी यह राय है कि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक है तब नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से अनुरोध कर सकेगा कि वह यथास्थिति, राज्य के या संघ राज्यक्षेत्र के विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि के अधीन स्थापित किसी निगम के लेखाओं की लेखापरीक्षा करे और जब ऐसा अनुरोध किया गया है तब, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ऐसे निगम के लेखाओं की लेखापरीक्षा करेगा और ऐसी लेखापरीक्षा के प्रयोजनों के लिये उसे निगम के लेखाओं और बहियों तक पहुंच का अधिकार होगाः

    परंतु ऐसा कोई अनुरोध तब तक नहीं किया जाएगा जब तक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श नहीं कर लिया जाता और जब तक निगम को ऐसी लेखापरीक्षा की प्रस्थापना की बाबत अभ्यावेदन करने का समुचित अवसर नहीं दे दिया जाता।

सरकारी कंपनियों और निगमों के लेखाओं के संबंध में रिपोर्टों का रखा जाना

19 क

  1. धारा 19 में निर्दिष्ट किसी सरकारी कंपनी या किसी निगम के लेखाओं के संबंध में नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्टें सरकार को या संबंधित सरकारों को प्रस्तुत की जाएंगी।
  2. केंद्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन अपने द्वारा प्राप्त प्रत्येक रिपोर्ट को, उसके प्राप्त होने के पश्चारत् यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।
  3. राज्य सरकार उपधारा (1) के अधीन अपने द्वारा प्राप्त प्रत्येक रिपोर्ट को उसके प्राप्त होने के पश्चापत् यथाशीघ्र राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवायेगी।

    स्पष्टीकरण: - इस धारा के प्रयोजन के लिये ऐसे किसी संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है "सरकार " या "राज्य सरकार " से उस संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है।

कतिपय प्राधिकरणों या निकायों के लेखाओं की लेखापरीक्षा

20

  1. धारा 19 में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, जहां किसी निकाय या प्राधिकरण के लेखाओं की लेखापरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन नहीं सौंपी गई है, वहां यदि, उससे, यथास्थिति राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के, जिसमें विधान सभा है, के प्रशासक द्वारा ऐसा करने का अनुरोध किया गया तो वह ऐसे निकाय या प्राधिकरण के लेखाओं की लेखापरीक्षा ऐसे निबंधनों और शर्तों पर करेगा जो उसके और संबद्ध सरकार के बीच अनुबंधित पाए जाएं, और ऐसी लेखापरीक्षा के प्रयोजनों के लिये उस निकाय या प्राधिकरण की बहियों और लेखाओं तक पहुंच का अधिकार होगाः

    परन्तु ऐसा कोई अनुरोध तब तक नहीं किया जाएगा जब तक नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श नहीं कर लिया जाता।

  2. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक, यथास्थिति राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के जिसमें विधान सभा है, के प्रशासक से किसी ऐसे निकाय या प्राधिकरण के, जिसके लेखाओं की लेखापरीक्षा उसे विधि द्वारा नहीं सौंपी गई है, लेखाओं की लेखापरीक्षा के लिये प्राधिकृत करने की प्रस्थापना उस दशा में कर सकेगा जब उसकी यह राय हो कि ऐसी लेखापरीक्षा इस कारण आवश्यक है कि केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र की, जिसमें विधान सभा है, सरकार द्वारा, ऐसे निकाय या प्राधिकरण में पर्याप्त रकम विनिहित की गई है या उसे उधार दी गई है, और, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल या प्रशासक ऐसा अनुरोध किये जाने पर नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को ऐसे निकाय या प्राधिकरण के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने के लिये प्राधिकृत कर सकेगा।
  3. उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट लेखापरीक्षा, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को तब तक नहीं सौंपी जाएगी जब तक, यथास्थिति, राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के जिसमें विधान सभा है, के प्रशासक का समाधान नहीं हो जाता कि ऐसा करना लोकहित में समीचीन है और जब तक संबद्ध निकाय या प्राधिकरण को ऐसी लेखापरीक्षा की प्रस्थापना के बारे में अभ्यावेदन करने का समुचित अवसर नहीं दे दिया जाता।

अध्याय-IV विविध

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की शक्ति का प्रत्यायोजन

21 . इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के उपबंधों के अधीन नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली कोई भी शक्ति उसके विभाग के ऐसे अधिकारी द्वारा प्रयुक्त की जा सकेगी जिसे वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे:

परंतु उस दशा के सिवाय जब नियंत्रक-महालेखापरीक्षक छुट्टी पर हो, या अन्यथा अनुपस्थित हो, कोई भी अधिकारी नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की ओर से किसी ऐसी रिपोर्ट को भेजने के लिये प्राधिकृत नहीं होगा जिसे, यथा स्थिति राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के जिसमें विधान सभा है, के प्रशासक को भेजने के लिये नियंत्रक-महालेखपरीक्षक संविधान द्वारा या संघ राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम (1963 का 20) द्वारा अपेक्षित है।

नियम बनाने की शक्ति

22

  1. केन्द्र सरकार, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करने के पश्चाात् इस अधिनियम के उपबंधों को, जहां तक वे लेखाओं के रखे जाने से संबंधित हैं, कार्यान्वित करने के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी।
  2. विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों के लिये या उनमें से किसी के लिये उपबंध कर सकेंगे, अर्थातः-
    1. वह रीति जिसमें लेखापरीक्षा और लेखा कार्यालयों को लेखे देने वाले खजानों, कार्यालयों और विभागों द्वारा प्रारम्भिक और सहायक लेखे रखे जाएंगे;
    2. वह रीति जिसमें संघ के या किसी राज्य के या ऐसी किसी विशिष्ट सेवा या विभाग के या किसी विशिष्ट वर्ग या प्रकार के लेखे, जिनकी बाबत नियंत्रक-महालेखापरीक्षक लेखे संकलित करने या रखने की जिम्मेदारी से अवमुक्त कर दिया गया है, संकलित किये जाएंगे या रखे जाएंगे;
    3. वह रीति जिसमें, यथास्थिति, संघ के या किसी राज्य के किसी कार्यालय या विभाग के भंडारों या स्टॉक के लेखे रखे जाएंगे;
    4. कोई अन्य विषय जो नियमों द्वारा विहित किया जाना है या विहित किया जाए।
  3. इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चातत् यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त अनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएं तो तत्पश्चादत् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्तर अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिये तो, तत्पश्चात् वह निष्प्रोभावी हो जाएगा किंतु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्राभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विनियम बनाने की शक्ति

23 .नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को इस अधिनियम के उपबंधों को, जहां तक वे लेखापरीक्षा की परिधि और विस्तार के संबंध में है, जिनके अंतर्गत सरकारी विभागों के मार्गदर्शन के लिये सरकारी लेखे रखने के साधारण सिद्धांत और प्राप्तियों तथा व्यय की लेखापरीक्षा के बारे में सामान्य सिद्धांत भी है, कार्यान्वित करने के लिये विनियम बनाने के लिये इसके द्वारा प्राधिकृत किया जाता है।

ब्यौरेवार लेखापरीक्षा से अभिमुक्त करने की शक्ति

24 .नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को इसके द्वारा प्राधिकृत किया जाता है कि जब भी परिस्थितियों से ऐसा युक्तिसंगत हो, वह किन्हीं लेखाओं या किन्हीं वर्गो के संव्यवहारों की ब्यौरेवार लेखापरीक्षा के किसी भाग से अभिमुक्ति प्रदान कर दे और ऐसे लेखाओं या संव्यवहारों के सम्बन्ध में ऐसी सीमित जांच पड़ताल लागू करे जो वह अवधारित करे।

निरसन

25 .नियंत्रक-महालेखापरीक्षक अधिनियम, 1953 (1953 की सेवा-शर्ते 21) इसके द्वारा निरसित किया जाता है।

शंकाओं का निराकरण

26 .शंकाओं के निराकरण के लिये घोषित किया जाता है कि इस अधिनियिम के प्रारंभ होने पर भारत (अनंतिम संविधान) आदेश, 1947 द्वारा यथानुकूलित भारत सरकार (लेखापरीक्षा और लेखे) आदेश, 1936, किसी ऐसी बात या कार्रवाई के सिवाय, जो उसके अधीन की जा चुकी है, प्रवृत्त नहीं रहेगा।


सीएजी के डीपीसी अधिनियम, 1971 में संशोधन

संशोधन अधिनियम, 1976 का सं. 45-एफ

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्तव्यक, शक्तिकयां एवं सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 में संशोधन के लिए एक अतिरिक्तं अधिनियम।

भारत के गणराज्यअ के सत्ता7ईसवें वर्ष में संसद द्वारा अधिनियम निम्नाीनुसार है:-

    1. इस अधिनियम को नियंत्रक-महालेखापरीक्षक का (कर्तव्य , शक्ति यों एवं सेवा की शर्तें) संशोधन अधिनियम, 1976 कहा जा सकता है।
    2. इसे मार्च 1976 के प्रथम दिवस से लागू माना जाएगा।
  1. 2. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्तव्यम, शक्तिायां एवं सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971 (जिसे यहां बाद में मुख्य् अधिनियम कहा गया) की धारा 10 में, उप-धारा (1) में (क) पहले परन्तुोक के लिए निम्नेलिखित परन्तुनकों को इनसे बदला जाए। बशर्तें राष्ट्रापति आदेश द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श के बाद उन्हेंो संकलन की जिम्मेादारी से मुक्ता कर सकता है।
    1. (i) संघ के कथित लेखे (या तो एक बार या क्रमवार कई आदेश जारी कर के); या
    2. किसी विशेष सेवा या संघ के विभागों के लेखें: आगे प्रावधान किया जाता है कि एक राज्य का राज्यकपाल राष्ट्र पति के पूर्व अनुमोदन से तथा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के साथ परामर्श के बाद आदेश के द्वारा उसे निम्न‍लिखित के संकलन के उत्ततरदायित्वक से मुक्तक कर सकता है।
    3. राज्यक के कथित लेखे (या तो कुछ आदेशों को एक बार अथवा, क्रमवार जारी करके); अथवा
    4. राज्यग की किन्हीब विशिष्ट सेवाओं अथवा विभागों के लेखें; (ख) दूसरे परन्तुचक में ‘’आगे प्रावधान किया गया है’’ शब्दों के लिए ‘’ भी प्रावधान किया गया’’ शब्द) बदला जाना चाहिए।
  2. मुख्या अधिनियम की धारा 11 में
    1. ’इसकी ओर से किसी और उत्त रदायी व्यथक्तिर द्वारा’’ शब्दोंज के लिए, ‘’राज्यपाल द्वारा या उसकी ओर से उत्तकरदायी कोई और व्यकक्तिय’’ द्वारा शब्दक को बदला जाना चाहिए।
    2. 2. निम्न लिखित परन्तुतकों को अंत में शामिल किया जाना चाहिए, नामत:प्रावधान किया जाता है कि राष्ट्र पति, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के साथ परामर्श के बाद, उन्हेंन आदेश द्वारा संघ या केंद्र शासित प्रदेश जिसकी विधान सभा है के वार्षिक प्राप्ति्यों और वितरणों से संबंधित लेखाओं को तैयार और प्रस्तुेत करने के उत्तकरदायित्वत से मुक्ति कर सकता है: आगे प्रावधान किया जाता है कि एक राज्यु का राज्य पाल, राष्ट्रकपति के पूर्व अनुमोदन के साथ और नियंत्रक महालेखापरीक्षक के साथ परामर्श के बाद, उसे आदेश द्वारा राज्य् के वार्षिक प्राप्ति्यों और वितरणों से संबंधित लेखों की तैयारी और प्रस्तुेत करने के उत्तयरदायित्वे से मुक्त् कर सकता हैं।
  3. 4. मुख्य धारा के खंड 22 में
    1. उप धारा (2) के खण्डी (ख) में ‘’लेखाओं के’’ शब्दोंं के बाद ‘’संघ या किसी राज्य’ के या के’’ शब्द शामिल किया जाएगा:
    2. उप-धारा (3) में ‘’दो कमिक सत्रों में’’ शब्दोंु के लिए, ‘’दो या अधिक अनुक्रमिक सत्रों में’’ शब्द. और शब्द और ‘’सत्र जिनमे इसे प्रस्तु त किया गया या इसके तुरन्तस बाद के सत्र में’’ शब्दोंत को ‘’सत्र के तुरन्तं बाद के सत्र या उक्तु क्रमिक सत्र’’ शब्दों से बदला जाए।
    1. भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक के (कर्तव्य्, शक्तिसयां तथा सेवा की शर्तें) संशोधन अध्यांदेश, 1976 को इसके द्वारा निरस्तर कर दिया गया है।
    2. ऐसे निरसन के बावजूद भी मुख्य अधिनियम के अन्तलर्गत कुछ भी किया गया या कोई कार्यवाही की गई, जैसा कि कथित अध्यानदेश द्वारा यथा संशोधित हो, इस अधिनियम द्वारा यथा संशोधित मुख्य अधिनियम के अन्त्र्गत किया गया या लिया गया माना जाएगा।

संशोधित अधिनियम, 1984 की सं. 2 (16 मार्च, 1984)

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम, 1971 को संशोधित करने के लिये इसके अतिरिक्त अधिनियम किया:-

भारत गणतंत्र के पैंतीसवें वर्ष में इसका संसद द्वारा निम्न प्रकार से अधिनियमित किया:

(6क) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (1) में निर्दिष्टन ऐसा कोई व्यक्ति, जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) संशोधन अधिनियम, 1984 के प्रारंभ के पश्चापत् नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के रूप में पद (चाहे उपधारा (8) में विनिर्दिष्टग किसी रीति से या त्यागपत्र द्वारा) छोड़ता है, इस प्रकार छोड़ने पर निम्नलिखित के हकदार होंगे:-

"इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, यात्रा भत्ता, किराया मुक्त मकान की सुविधा और ऐसे किराया मुक्त मकान के मूल्य पर आय कर के अदायगी से छूट यातायात सुविधाएँ, सत्कार भत्ता और चिकित्सा सुविधा से संबंधित सेवा की शर्तें तथा सेवा की ऐसी अन्य शर्ते जो उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम के अध्याबय 4 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को तत्समय लागू है जहां तक हो सके, किसी सेवारत या नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को लागू होंगी, जैसा मामला हों।"

  1. इस अधिनियम का नाम नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1984 कहा जाएं।
  2. नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम 1971 (यहां मुख्य अधिनियम के रूप में संदर्भित) में धारा 6 में, उप-धारा (6) के बाद, निम्नलिखित उप-धारा सम्मिलित होगी अर्थात:-
    1. उस पेंशन का हकदार होगा जिसका वह उस सेवा के नियमों के अधीन, जिसमें वह था, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के रूप में अपनी सेवा की ऐसी सेवा में पेंशन के लिये गिनी जाने वाली निरंतर अनुमोदित सेवा के रूप में संगणना करके हकदार हुआ होता; और
    2. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक रूप में सेवा के प्रत्येक पूरे वर्ष के बाबत सात सौ रूपये प्रति वर्ष की विशेष पेंशन का हकदार होगा; बशर्ते कि इस उप-धारा के खण्डे (क) और खण्डक (ख) के अंतर्गत उसे देय राशि का कुल किसी भी हालत में प्रतिवर्ष बीस हजार और चार सौ रूपये की राशि से अधिक नहीं होगा।
  3. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें [1987 की 50]) संशोधन अधिनियिम, 1987 इस प्रकार पद छोड़ने पर वह निम्नलिखित के हकदार होंगे-
    1. पेंशन जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को देय पेंशन के बराबर होगी- (i) यदि ऐसे व्यक्ति उप-धारा (1) या उपधारा (3) में निर्दिष्टा व्यक्ति है तो, समय-समय पर यथा संशोधित उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (सेवा शर्तें) अधिनियम, 1958 (जिसे इसमें इसके पश्चाित् उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम उल्लेखित) की अनुसूची के भाग III के प्रावधानों के अनुसार; और (ii) यदि ऐसा व्यक्ति उपधारा (4) में निर्दिष्टश व्यक्ति है तो, समय-समय पर यथा संशोधित, उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम की अनुसूची के भाग I के प्रावधानों के अनुसार;
    2. 2. ऐसी पेंशन (पेंशन का रूपान्तरित सहित), परिवार पेंशन और उपदान का, जो समय-समय पर यथा संशोधित, उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को अनुज्ञेय है, हकदार होगा।
  4. मुख्यन अधिनियम की धारा 7 हटानी होगी।
  5. 4. मुख्यन अधिनियम की धारा 9 में प्रारंभिक पैराग्राफ के लिए निम्नलिखित प्रतिस्थापित होगा, नामत:-:-

अधिनियम, 1987 की सं. 50 (16 दिसम्बर, 1987)

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम, 1971 को संशोधित करने के लिये इसके अतिरिक्त अधिनियम भारत गणतंत्र के अडतीसवें वर्ष में इसका संसद द्वारा निम्न प्रकार से अधिनियमित किया:-

 

अधिनियम, 1994 ,की सं. 51 (26 अगस्त, 1994)

नियंत्रक-महालेखापरीक्षक कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम, 1971 को संशोधित करने के लिये इसके अतिरिक्त अधिनियम भारत गणतंत्र के पैंतालीसवें वर्ष में इसका संसद द्वारा निम्न प्रकार से अधिनियमित किया:-

  1. इस अधिनियम का नाम नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1984 कहा जाए।
  2. 2. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम 1971 (यहां मुख्यम अधिनियम के रूप में संदर्भित) में धारा 6 में,-

    क) पेंशन जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को देय पेंशन के बराबर होगी-

    (ख) ऐसी पेंशन (पेंशन का रूपान्तरित सहित), परिवार पेंशन और उपदान का, जो समय-समय पर यथा संशोधित, उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को अनुज्ञेय है, हकदार होगा;

    1. उप-धारा (6क) और (6ख) में, प्रावधानों को हटाना होगा और 1 जनवरी, 1986 से हटा हुआ माना जायेगा;
    2. उप-धारा (6ख) के बाद, निम्नलिखित उप-धारा को शामिल किया जाएगा, नामत:- (6ग) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (1) में निर्दिष्टक ऐसा कोई व्यक्ति, जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) संशोधन अधिनियम, 1984 के प्रारंभ के पश्चा त् नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के रूप में पद (चाहे उपधारा (8) में विनिर्दिष्टक किसी रीति से या त्यागपत्र द्वारा) छोड़ता है।
    3. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें [1987 की 50]) संशोधन अधिनियिम, 1987 इस प्रकार पद छोड़ने पर वह निम्नांकित के हकदार होंगे-
      1. यदि ऐसे व्यक्ति उप-धारा (1) या उपधारा (3) में निर्दिष्ट व्यक्ति है तो, समय-समय पर यथा संशोधित उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1958 (जिसे इसमें इसके पश्चातत् उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम उल्लेखित) की अनुसूची के भाग III के प्रावधानों के अनुसार; और
      2. यदि ऐसा व्यक्ति उपधारा (4) में निर्दिष्टम व्यक्ति है तो, समय-समय पर यथा संशोधित, उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम की अनुसूची के भाग I के प्रावधानों के अनुसार;
  3. मुख्यं अधिनियम की धारा 7 हटानी होगी।
  4. मुख्यं अधिनियम की धारा 9 में प्रारंभिक पैराग्राफ के लिए निम्नलिखित प्रतिस्थापित होगा, नामत:- "इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, यात्रा भत्ता, किराया मुक्त मकान की सुविधा और ऐसे किराया मुक्त मकान के मूल्य पर आय कर के अदायगी से छूट यातायात सुविधाएँ, सत्कार भत्ता और चिकित्सा सुविधा से संबंधित सेवा की शर्तें तथा सेवा की ऐसी अन्य शर्ते जो उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम के अध्याशय 4 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को तत्समय लागू है जहां तक हो सके, किसी सेवारत या नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को लागू होंगी, जैसा मामला हो।"

    ( (6घ) इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति, जिसने 16 दिसम्बर 1987 से पहले किसी समय नियंत्रक-महालेखापरीक्षक पद (चाहे उपधारा (8) में निर्दिष्टि किसी रीति से या त्यागपत्र द्वारा) छोड़ा है, उस तिथि को और उस तिथि से उप-धारा 6(ग) में विनिर्दिष्टे पेंशन का हकदार होगा।

      1. इस अधिनियम का नाम नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्त्तव्य, शक्तियां तथा सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1984 कहा जाएं।
      2. इस अधिनियम की धारा 2 को 27 मार्च, 1990 से लागू माना जाएगा और उसकी धारा 3, 16 दिसम्बर, 1987 से लागू मानी जाएगी।
    1. 2. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के (कर्त्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 (इसके पश्चाबत् मुख्य8 अधिनियम के रूप में संदर्भित) धारा 3 में, परंतुक में-
      1. खण्डा (ख) में, अंत में आने वाले शब्द ‘और’ को हटाना होगा;
      2. खण्डा (ग) को हटाना होगा।
    2. उप-धारा (6ग) के बाद, मुख्य अधिनियम की धारा 6 में, निम्नलिखित उप-धाराओं को इस प्रकार प्रतिस्थापित किया जाएगा नामत:-
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