लेखापरीक्षा प्रतिवेदनों का क्या होता हैं?
संघ के मामले में सीएजी के प्रतिवेदन राष्ट्रशपति को और राज्य मामले में राज्यपाल को प्रस्तुत किये जाते हैं जो उन्हें सदन के समक्ष प्रस्तुत करता है। एक बार सदन में प्रस्तुत किये जाने के बाद, प्रतिवेदन लोक लेखा समिति (पीएसी)/लोक उपक्रम समिति (कोपू) की केंद्रीय और राज्य स्थाई समितियों को स्थाई रूप से संदर्भित हो जाते हैं। ये विशिष्टम समितियां वार्षिक लेखे और उनपर लेखापरीक्षा प्रतिवेदनों की समयबद्ध और गहन संवीक्षा उपलब्ध करवाने के लिए गठित की गई हैं। समितियां लोक हित के सर्वाधिक महत्वपूर्ण निष्कीर्षों और सिफारिशों को हमारे प्रतिवेदनों से चुनते है और उन पर अपनी सुनवाईयों रखते हैं। हम इस कार्य में इन समितियों को अपना तकनीकी सहायता करते हैं। समितियों की सुनवाईयों पर, कार्रवाई/गैर कार्रवाई के लिए जिम्मेदार कार्यकारी को बुलाया जा सकता है। उनकी जांच के आधार पर, समिति अपने प्रतिवेदन तैयार करते है और विधान मंडल को प्रस्तुत करते है जो समिति की सुनवाईयों, कार्यकारी द्वारा की गई कार्रवाई और प्रशासनिक प्रथाओं और कार्यप्रणालियों को सुधारने के लिए सिफारिशों को शामिल कर सारबद्ध करती है।
हमारे प्रतिवेदन का केंद्र बिंदु क्या है?
लेखापरीक्षा प्रतिवेदन में अंतिम, पूर्णत: परिपुष्टे लेखापरीक्षा निष्क र्ष होते हैं। ये विभाग द्वारा स्वीकृत की गई है और/या तथ्यातत्मक रूप से साबित की गई और विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए काफी महत्वपूर्ण है। हमारी लेखापरीक्षा का उद्देश्य प्रबंधन में और सरकारी गतिविधियों और कार्यक्रमों में सुधार करना है। हम पहचानी गई त्रुटियों की प्रकृति को सुनिश्चिनत करते हैं कि वे एकाकी या पुनरावर्ती प्रकार की है। हम न केवल सुधारात्मक कार्रवाई को प्रेरित करना चाहते हैं अपितु यह भी सुनिश्चितत करना चाहते हैं कि दोबारा गलती न दोहराई जाये। हम कार्यप्रद्धति, प्रक्रियाएं और प्रसंस्करणों को सुधारने के लिए उचित, सूचित और कार्यान्वयन योग्य सिफारिशें करते हैं।
किस प्रकार के प्रतिवेदन सीएजी प्रस्तुत करता है?
संसद और राज्य विधान मंडलों में प्रस्तुत की गई सीएजी की लेखापरीक्षा प्रतिवेदनों में राजस्व संग्रहण और सरकार के व्यय को कवर करते हुए अनुपालना और निष्पाईदन लेखापरीक्षा प्रतिवेदन, विधान द्वारा प्रावधान किए गए कुछ स्वायत्त निकायों की कार्य प्रणाली पर पृथक लेखापरीक्षा प्रतिवेदन, संघ और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर प्रतिवेदन और संसद और विधान मंडलों द्वारा पारित किये गये विनियोजन अधिनियमों के अनुपालन पर प्रतिवेदन शामिल होते हैं। सीएजी राज्य विधान मंडलों में राज्यों के प्रमाणित वार्षिक लेखे भी प्रस्तुत करता है जिन्हें वित्त और विनियोजन लेखे कहा जाता है।
अपनी भूमिका निभाने के लिए सीएजी की क्या शक्तियां है?
उनके विस्तृत लेखापरीक्षा अधिदेश का प्रयोग निर्बाध रूप से करने के क्रम में अधिनियम का प्रावधान करता है:
उनके लेखापरीक्षा के अधीन किसी कार्यालय या संगठन के निरीक्षण करने की शक्ति।
सभी लेन-देनों की जांच और कार्यकारी से प्रश्नष करने की शक्ति।
किसी भी लेखापरीक्षित सत्त्व से कोई भी रिकार्ड, पेपर, दस्तावेज मांगने की शक्ति।
लेखापरीक्षा की सीमा और स्व रूप पर निर्णय लेने की शक्ति।
सीएजी के क्या कर्त्तव्य है?
जैसा संविधान के अनुच्छेद 149 में उल्लेखित है संसद ने 1971 में सीएजी के कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें अधिनियम नामक एक विस्तृत विधान को अधिनियमित किया जो उनके अधिदेश का वर्णन करता है और सरकार (केंद्र और राज्य) के लगभग प्रत्येक व्यय राजस्व संग्रहण या सहायता/अनुदान प्राप्त करने वाली इकाई उनकी लेखापरीक्षा के अंतर्गत आती हैं। उनका कर्तव्य अग्रलिखित की लेखापरीक्षा करना और उस पर रिपोर्ट तैयार करना है:
संघ और राज्य सरकार के कोष (समेकित निधि) से संबंधित सभी प्राप्तियां और इस से किये गये व्यय।
आकस्मिक व्यय (आकस्मिक निधि) और सरकार द्वारा धारित लोक धन उदाहरणत: केंद्र सहित राज्य स्तर पर डाक बचत, विकास पत्र (लोक लेखा) से संबंधित सभी लेन-देन।
किसी भी सरकारी विभाग में रखे गये सभी व्यापार, उत्पादन, लाभ और हानि खाते, तुलन पत्र और अन्य सहायक खाते।
सभी सरकारी कार्यालयों और विभागों के सभी स्टोर और स्टॉक खाते।
सभी सरकारी कंपनियों और निगमों जैसे ओएनजीसी, सेल आदि के खाते।
सरकारी धन प्राप्त करने वाले सभी स्वायत्त निकाय और प्राधिकरण जैसे नगर, आईआईएमज़, आईआईटीज़, राज्य स्वास्थ्य संस्थाओं के खाते।
राष्ट्रापति राज्यपाल के अनुरोध या उनके अपनी पहल पर किसी निकाय या प्राधिकरण के खाते।
अधिनियम राज्य सरकारों द्वारा अनुरक्षित सहायक खातों से राज्य सरकारों के खातों के संकलन का प्रावधान करता है।
सीएजी की स्वतंत्रता कैसे सुनिश्चियत की गई है?
संविधान निम्नलिखित रूप से सीएजी द्वारा लेखापरीक्षा की स्वतंत्र और निष्परक्ष प्रकृति के लिए सक्षम बनाता है:
भारत के राष्ट्र पति द्वारा सीएजी की नियुक्ति
पदच्यूति हेतु विशेष प्रक्रिया (जैसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश)
भारत की समेकित निधि से वेतन और प्रभारित व्यय (दत्त मत)
उनकी कार्य अवधि समाप्त होने के बाद किसी अन्य सरकारी कार्यालय में कार्य करने की अनुमति न होना।
हम कौन है?
प्रजातन्त्र में जिनके पास शक्तियां और जिम्मेदारियां होती है वे अपने कार्यों के प्रति जवाहदेह होने चाहिए। इस उद्देश्य हेतु संविधान ने कई संस्थागत तंत्र जैसे न्यायापालिका, सर्तकता निकाय और एक स्वतंत्र सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्था (साई) को अधिदेशित किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक और भारतीय लेखा तथा लेखापरीक्षा विभाग (आईएएडी) इसके अंतर्गत कार्य करते हुए भारतीय सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्था को गठित करते हैं। भारत के संविधान ने हमें राष्ट्र के लेखापरीक्षक के रूप में अधिदेशित किया है। इस प्रकार हम जिम्मेदारी सुनिश्चिात करने के लिए एक यंत्र हैं। सविधान का अनुच्छेद 149-151 सीएजी की विशेष भूमिका निर्धारित करती है।