लेखापरीक्षा अधिदेश के अंतर्गत भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक को उनके द्वारा या उनके ओर से संचालित लेखापरीक्षा से सम्बंधित क्षेत्र एवं विस्तार के निर्णय का एकल प्राधिकार प्राप्त है I ऐसे प्राधिकारी लेखापरीक्षा उद्देश्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के अलावा  किसी प्रतिफल तक सीमित नहीं है I नियंत्रक महालेखापरीक्षक मोटे तौर पर वित्तीय, अनुपालन एवं निष्पादन लेखापरीक्षा आदि की लेखापरीक्षा करता है I 

लेन-देन/अनुपालन लेखापरीक्षा 
नियंत्रक महालेखापरीक्षक द्वारा नमूना लेखापरीक्षा के क्षेत्र। नियंत्रक महालेखापरीक्षक वर्ष के दौरान नमूना लेखापरीक्षा का संचालन कर सकता है।  इस लेखापरीक्षा में कम्पनी के लेन- देन शामिल होंगे जिसमें नियमितता,शुद्धता,ईमानदारी , कार्यक्षमता एवं प्रभाविता की जाँच किया जायेगा एवं विधि, नियम और विनिमय के अनुपालन में असफलता, हानि, कुप्रबन्ध, धोखाधड़ी, भ्र्ष्टाचार एवं अन्य अनियमितताओं जैसे मामलों पर रिपोर्ट करेगा। 

पूरक लेखापरीक्षा के क्षेत्र 
यह एक सांविधिक लेखापरीक्षक है जो मुख्या रूप से कम्पनी के लेखे पर अपना विचार प्रकट करता है। नियंत्रक महालेखापरीक्षक द्वारा किये जाने वाले लेखे का पूरक लेखापरीक्षा मुख्यतः वित्तीय लेखापरीक्षा के गुणवत्तापूर्ण नियंत्रक का एक माध्यम है जो सांविधिक लेखापरीक्षक के चयन के साथ प्रारम्भ होती है और लेखापरीक्षा प्रतिवेदन प्राप्त निष्कर्षों की समीक्षा सहित उनके कार्य की निरंतर निगरानी तक जारी रहता है। एक सरकारी कम्पनी के वार्षिक लेखे का पूरक लेखापरीक्षा का क्षेत्र  एवं नियंत्रक महालेखापरीक्षक  द्वारा मानित सरकारी कम्पनी में चयनित लेखा अभिलेखों की जाँच और कम्पनी के वार्षिक लेखे पर सांविधिक लेखापरीक्षा प्रतिवेदन एवं उनके द्वारा प्रस्तुत विचार की समीक्षा शामिल होगी। 

निष्पादन लेखापरीक्षा क्षेत्र 
संवैधानिक जिम्मेदारी के अनुसरण में, नियंत्रक महालेखापरीक्षक को इसके द्वारा या इसके ओर से संचालित लेखापरीक्षा की प्रकृति, क्षेत्र, विस्तार क्षेत्र एवं मात्रा की निर्णय का अधिकार।  आगे यह उल्लेख है कि निष्पादन लेखापरीक्षा संगठन के कार्यक्रम या स्किम की मितव्ययिता, कौशल और प्रभावी संचालन का स्वतंत्र  मूल्यांकन या जाँच है।

 

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