1. डी.डी.ओ./डी.टी.ओ. द्वारा ऋण वसूलियों का गलत वर्गीकरण।
  2. व्यक्तिगत के साथ-साथ डी.डी.ओ. द्वारा लंबित बकाया के बारे में सम्प्रेषण की पुष्टि ना होना।
  3.  डी.डी.ओ. द्वारा ब्याज की अधिक/ कम वसूली।
  4. संपति के गिरवीकरण, बीमा और ऋण की लंबित वसूली (मोर्टेरियम के बाद) की कमजोर देख रेख जो दंडात्मक ब्याज को बढ़ाता है।
  5. संस्थागत ऋणों के लिए नियम व शर्तें जैसे ऋण की अवधि, मोर्टेरियम की अवधि यदि कोई है, किश्तों की संख्याँ और प्रत्येक किश्त की राशि, पुनर्भुगतान के आरम्भ की तिथि, ब्याज/दंडात्मक ब्याज की दर, उपयोगिता प्रमाण-पत्र/ अनाहरण प्रमाण-पत्र और अग्रिम स्टैम्प प्रमाण-पत्र और विशेष शर्तें यदि कोई है।
  6. संस्थागत ऋणों के बकाया की पुष्टि।