स्वायत्त निकायों की लेखापरीक्षा

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के कार्यों को मुख्यतः भारत के संविधान के अनुच्छेद 149 से 151 तक उपबंधों के प्रावधानों से लिया गया है। अनुच्छेद 149 में यह प्रावधान है कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक संघ के और राज्यों के तथा किसी अन्य प्राधिकारी या निकाय के लेखाओं के सम्बन्ध में ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का उपयोग करेगा जिन्हें संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किया गया हो। शब्द ‘उपनियम’ का अर्थ कि संसद द्वारा बनाये गए प्रमुख अधिनियमों में प्रावधानों के रूप में व्याख्या की गई है तथा शब्द “विधि के अधीन” का तात्पर्य कानून के प्रभाव वाले अधीनस्थ विधि में प्रावधान है उदाहरणार्थ सरकारों द्वारा मूल अधिनियमों में उनको निहित शक्तियों के अधीन नियम एवं विनियम तथा जिन्हें ऐसी शक्तियों के अधीन तैयार किया गया घोषित किया गया है। संसद ने भारत के संविधान के कथित अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसरण में नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां एवं सेवा की शर्ते) अधिनियम 1971 को पारित किया है जिसका 1976,1984 तथा 1987 में संशोधन किया गया। कथित अधिनियम को इस पुस्तिका में बाद में “अधिनियम” के रुप में भी निर्दिष्ट किया गया है। अधिनियम की धारा 14,15,19 तथा 20 भारत के  नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक को निकायों/प्राधिकरणों की लेखापरीक्षा करने तथा उनके संबंध में ऐसे कर्तव्यों का निर्वाह करने तथा ऐसी शक्तियों को लागू करने, जैसा अधिनियम के अधीन निर्धारित किया गया है, का अधिकार प्रदान करता है। एक राज्य विधानमंडल का कोई कानून भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक या उनके प्रतिनिधियों को किसी कर्तव्य या शक्ति नहीं प्रदान कर सकते हैं। इसी प्रकार, संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्यों एवं शक्तियों को किसी राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन संकुचित या अधिक्रमित नहीं किया जा सकता।

निकाय अथवा प्राधिकरण का तात्पर्य

संविधान के अनुच्छेद 149 में प्रयोग किए गए शब्दों “निकाय” तथा ‘प्राधिकरण’ को न तो संविधान और न ही नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के (कर्तव्य, शक्तियां तथा सेवा की शर्तें) अधिनियम 1971, जिनमें इन शब्दों का भी प्रयोग किया गया है, में परिभाषित किया गया है। हालांकि, “प्राधिकरण” के अर्थ का भारत के महान्यायवादी द्वारा संविधान में प्रावधानों अथवा संसद या राज्य विधान मंडलों द्वारा पारित अधिनियमों के आधार पर उनमें निहित शक्ति या अधिकार का उपयोग करने वाले एक व्यक्ति अथवा निकाय के रूप में व्याख्या की गई है। “निकाय” के अर्थ को उनके द्वारा व्यक्तियों के संचय, चाहे निगमित या गैर-निगमित, के रूप में व्याख्या की गई है।

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