यह कार्यालय सरकारी व्यय के विभिन्न पहलुओं का परीक्षण करता है, जिसमें अन्य शामिल है-

  • निधियों के प्रावधानों के सापेक्ष लेखापरीक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए कि खातों में व्यय के रूप में  दर्शायी  गयी धनराशि उस उद्देश्य के लिए अधिकृत थी जिसके लिए व्यय किया गया। 
  • नियमों एवं विनियमों के सापेक्ष लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि किया गया व्यय, सार्वजनिक धन को व्यय करने के लिए बनाए गए नियमों, विनियमों और विधि के अनुरूप था।
  • व्यय की स्वीकृतियों की लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि व्यय का अनुमोदन शासन में सार्वजनिक धनराशि व्यय करने हेतु सक्षम अधिकारी द्वारा किया गया।
  • प्रोप्राइटी लेखापरीक्षा जो व्यय की मात्र औपचारिकता की जांच से परे अपनी बुद्धिमत्ता और मितव्ययिता तक फैली हुई है और अनुचित व्यय या सार्वजनिक धन की बर्बादी के मामलों को प्रकाश में लाने के लिए है।
  • निष्पादन लेखापरीक्षा यह देखने के लिए कि शासकीय कार्यक्रमों ने निम्नतम् दर पर वांछित उद्देश्य और अभीष्ट लाभ प्राप्त किया।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के प्राप्तियों की लेखापरीक्षा करते समय, यह कार्यालय जांच करता है कि क्या नियम और प्रक्रियाएं राजस्व के आंकलन, संग्रहण और आवंटन विधि संगत है तथा राजस्व का कोई रिसाव तो नहीं है जो कि सरकार को प्राप्त होना था। 
  • स्वतंत्रता के पश्चात्, व्यय से मिलान हेतु व्यय-राजस्व और पूंजी प्राप्तियों एवं ऋण में परिचर वृद्धि के साथ आर्थिक विकास और समाज कल्याण की गतिविधियों में भारी उछाल आया है। सरकार के चरित्र में परिवर्तन और उसकी गतिविधियों की जटिल प्रकृति ने लेखा परीक्षा की प्रकृति और दायरे में बदलाव की मांग की। लेखापरीक्षा केवल लेखांकन और नियमितता जांच से सिस्टम के मूल्यांकन और सरकार के संचालन के अंतिम परिणाम, उनकी अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिए विकसित हुई है।
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