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जनसंख्या में लगातार वृद्धि, व्यापक तकनीकी आधुनिकीकरण, नई और अस्थिर जीवन शैली ने जलाभाव की समस्या को निमंत्रित कर, इसे अधिक गंभीर बना दिया है। पेयजल तक पहुंच जीवन का मौलिक अधिकार है। स्वच्छ पेयजल पाने का संवैधानिक अधिकार भोजन के अधिकार से लिया गया है, जिसे संविधान के अधीन गारंटीकृत जीवन के अधिकार के व्यापक शीर्षक के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश राज्य सतलुज, ब्यास, रावी, यमुना तथा चिनाब नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों से प्राप्त जल की भारी मात्रा से संपन्न पहाड़ी प्रदेश है। 1999 के दौरान राज्य में जल की आवश्यकता 454.53 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) (ग्रामीण: 384.32 एमएलडी व शहरी: 70.21 एमएलडी) थी, जिसके 2021 के दौरान 726.46 एमएलडी (ग्रामीण: 575.97 एमएलडी व शहरी: 150.49 एमएलडी) तक बढ़ने का अनुमान था।
लोगों को पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के महत्व को ध्यान में रखते हुए, 2016‑21 की अवधि हेतु हिमाचल प्रदेश में पेयजल सेवाओं पर एक निष्पादन लेखापरीक्षा आयोजित की गई।